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________________ राकेट युग और जैन सिद्धान्त लेखक - श्री. मोहनलाल जैन, मु. खुडाला . आज संसार बड़ी तेजी से करवटें बदल रहा है। विज्ञान की चरम उन्नति के साथ ही साथ सभ्यता भी करवटें बदल रही है। आजसे ८० साल पहले पैदा हुए आदमी से पूछीये, जिस समय वह अपनी माँ की गोदमें किलकारी मारता था, उस समय विज्ञान भी शैशवास्था में था। जब उसने यौवन में प्रवेश किया तो विज्ञान ने भी उन्नति की आगे ओर कदम बढाया। सडको पर मोटरें व रेल्वे चलने लगी और धीरे २ घोडे गाडियों की जगह मोटरों लेने लगी। धीरे २ आदमी ने पक्षी की तरह आकाश में उडने का स्वप्न पुरा किया। वीजली के लडुओ से शहर जगमगा उठे। आज तो घोडे गाडियों की जगह रेले, मोटरे, ट्रामें और बसों की भरमार दिखाई देती है। जिन्दगी के हर पहलु में विज्ञान ही विज्ञान दिखाई दे रहा है। आज विज्ञान जन्म मरण के सिवाय आदमी का हर दैनिक काम करता है। विज्ञान की करामत से आज एक साधारण आदमी एक साधारण दुकानदार से अपनी वह इच्छा पुरी कर सकता है वो कि आज से कुछ शताब्दी पहले एक बड़े साम्राज्य का सम्राट नहीं कर सकता था। रेडीयों द्वारा दुनिया की किसी भी कोने की वह खबर पा सकता है। टेलीविजन द्वारा अपने बिस्तर पर सोते बम्बई मे हो रहे नाचों का मजा ले सकता है। आज संसार के विभिन्न जाति, धर्म, संस्कृति, भाषा व देश देशान्तर के लोग एक दूसरे से मिलते है। समय और दूरी कम हो गई है। विद्युत युग समाप्त हो चुका है और अब राकेट युग शुरू हुआ है। मानव ने आज विज्ञान को वह रूप दे दिया है वह चन्द्रलोक व दूसरे ग्राहोमें जाने को सोच रहा है। ऐसा मालुम होता है मानों स्वर्ग लोक पृथ्वी पर ही उतर आया हो । इतना सब होते हुए भी आज विश्व में तनाव और भय का वातावरण छाया हुआ है । आज सबके सामने यही समस्या है कि कहीं तृतीय महायुद्ध न छिड जावें, यदि छिड़ गया तो सर्वनाश के सिवाय कुछ नहीं होगा । क्या विज्ञान की चरम उन्नति का अन्तिम लक्ष्य सर्वनाश और प्रलाप है ? मार्शल जुकोव व खुश्चेव (रूसी नेता) ने तो यहाँ तक घोषणा कर दी है कि अब हवाई जहाज व जेट-विमान केवल अजायबघर की सामग्री रह गई है, आनेवाली पीढ़ियाँ अजायबघर में कोतुहला से देखगीं कि किसी जमाने में हवाई जहाजों से लड़ाई होती थी । इसका अर्थ यह हुआ कि राकेटों द्वारा केवल जन-संहार ही नहीं होगा वरन् जमीन कुछ शताब्दी तक ऊसर हो जावेगी और मानव का इस दुनियाँ से अस्तित्व समाप्त हो जावेगा। सम्पूर्ण विश्व एक फौजी केम्प की तरह दिखाई दे रहा है । सम्पूर्ण विश्व आज दो परस्पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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