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________________ विषय खंड राकेट युग और जैन सिद्धान्त विरीधी जुथ्थो में विभाजित है-(१) रुसी जुथ्थ व (२) अमेरिकन जुथ्थ । दोनों जुथ्थ छोटे छोटे कमजोर राष्ट्रो को अपनी ओर मिला रहे है। जिसमें तनाव का वातावरण गम्भीर हो गया है। आज शिखर राष्ट्रों की कुटनीति के कारण विश्व में जगह २ पर ज्वालामुखी पैदा हो रहे हैं, न मालुम कब उगल पड़े और सम्पूर्ण विश्व को अपने मुख में समा बैठे। लेकिन आज विश्व में एक तीसरा अंकुर पनप रहा है जो तटस्थता की नीतिको अपना कर शान्ति क्षेत्र का निर्माण कर रहा है। इस जुथ्थ का नेतृत्व कर रहा है भारत-इसी तटस्थता व स्वतन्त्र विदेश नीति के कारण दोनों परस्पर विरोधी जुथ्थो में उसका सन्मान है । तब भी विश्व शान्ति खतरे में पड़ती है। युद्ध भयसे पीड़ित जनता की आशा भारत पर बँधवाती है । हमारी विदेश नीति पर भारतीय संस्कृति की गहरी छाप लगी हुई है। भारतीय संस्कृति का आधार है अहिंसा व मित्रता । भारतीय संस्कृति जैन धर्म के सिद्धान्तों की खूब ऋणी है । विश्व में यहीं एक धर्म है जो कि अहिंसा को बहुत सुक्ष्म दृष्टि से मानता है । जैन दर्शन व संस्कृति की निम्न बिशेषतायें है । (१) अहिंसा- (२) मित्रता व भाईचारा (३) अनेकान्तवाद अहिंसाः-अहिंसा जैन धर्म की जड़ है । अहिंसा का अर्थ यहाँ बड़ा व्यापक है और उसका सुक्ष्म से सुक्ष्म विश्लेषण किया गया है । दूसरे अर्थों में अहिंसा को "जीओं और जीने दो” का सिद्धान्त कह सकते है । यदि इस सिध्धान्त को हम क्रियात्मक रूपमें हर पहलु में काम में ले लेवें तो संसार की आधी समस्या सुलझ सकती है। मित्रताः-आजके बडे २ राष्ट्र यह सोचते है कि हमारे पास राकेट अस्त्र है। अतः वे दूसरे राष्ट्रों के सामने क्यों झुके ? बलवान राष्ट्र कमजोर राष्ट्र को गुलाम बनाना चाहता है । यह कारण है कि आज विश्व दो फौजी जुथ्थो में विभाजित हो गया है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के साथ शस्त्र के बल पर समस्यायें सुलझाना चाहता है। यदि हम आपसी बातचीत व सहयोग से आपसी समस्यायों को सुलझावें तो वर्तमान तनाव व दंगे लड़ाई दूर हो सकती है । फौजी जुथ्थ की अपेक्षा यदि हम मित्रता के ऐसे जुथ्थ बनावें जिसमें आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक सहयोग सम्मलित हो। तो विश्व की सम्पूर्ण दरिद्रता, कडवापन शत्रता समाप्त हो सकती है, और सम्पूर्ण विश्व एक कुटम्ब का रूप धारण कर सकता है । (३) अनेकान्तवादः-अनेकांतवाद का अर्थ है कि एक आदमी तो कुछ कहता है वह सम्पूर्ण सत्य नहीं है वरन आंशिक सत्य है। इस सिद्धान्त के अन्तर्गत निम्न बातें आ सकती है Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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