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________________ विषय खंड निवृत्ति लेकर प्रवृत्ति की ओर % अयोग्य है । उत्थान जिस का होता है उसी का एक समय पतन भी होता है, और गिरनेवाला ही पुनः ऊठकर के कार्य करने के लिये तत्पर होकर सफलता पाता है। इसी लिये प्रत्येक बात को कहने के पहले विचार कर लेने के बाद ही अपने वचन को निकालना चाहिये। भौतिकता के पीछे पागल बनने वाले, उन्नति की पुकार करने वाले यहाँ तक कह देते है कि "हमारे समाज का पतन यदि किसी ने किया है तो वह साधु समाजने ही किया है" । कितना अज्ञान ! जिस समाजने हमारे सिद्धान्तों का रक्षण किया, जिन्होंने सभी प्रकार के कष्ट सहन कर के भी हमारे मंदिर एवं शास्त्रों को सुरक्षित रखा, आज भी जो जैनसिद्धान्तों का प्रचार प्रसार करने के लिये कटिबद्ध हैं उन के लिये इस प्रकार के शब्द और उनके प्रति घृणा करना हमारे लिये घातक है, यह निःसन्देह सत्य है, क्यों कि जैन धर्म के चारस्तंभ में यह ऐसा स्तंभ है जिस के सहारे दूसरे स्तंभ रह सकते हैं । उस का अपमान हो ऐसे शब्द या उससे मानसिक घृणा भी प्रत्येक कार्य में विघ्न उपस्थित करती है। कोई अंग समाज का अकेला रह कर अपना कार्य सिद्ध नहीं कर सकता । ____संसार में ऐसी कौनसी चीज है जो अच्छी ही रह सकती है सदा के लिये ! हाँ, बीतराग परमात्मा में कोई दोष नहीं है । उन्हें छोड़कर सभी में किसी न किसी प्रकार की बुराई या कमजोरी रहती है, इस का सारांश यह नहीं होता है कि एक जूं के कारण सभी वस्त्रों को ही फेंक दें ! या बुरे कह दें! यदि ऐसा करते हैं या कहते हैं तो करने और कहनेवालों की दुनिया में इज्जत-प्रतिष्ठा नहीं होती ! वास्तव में हमें यही सोचना है कि किससे लाभ है और किस से हानी ? पुराने को जडमूल से न ऊखाड़ फेंककर उस में आई बिकृति को दूर करने में ही सही समयक्षता और समझदारी है । इस के लिये ही यह नवयुग का आह्वान है। . हाँ, तो चलो । हमारी अज्ञानमूलक प्रवृत्ति को जल्दी से निवृत्ति की ओर से चलें और सशानमय प्रवृत्ति को अपनावें । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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