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________________ असाम्प्रदायिकता, समन्वय, सर्वोदय जैसे नैतिक मूल्यों में श्रद्धा का संपादन किया। उन्होंने दश वर्ष पर्यन्त श्री अ०भा० श्वे० . रखनेवाले मानवतावादी अनेक महानुभावों की उपस्थिति से स्थानकवासी जैन कॉन्फरन्स के मंत्रीपद पर रहकर जैन समाज । यह अमृत महोत्सव बहुत ही सफल और समाजोपयोगी सिद्ध की निष्ठापूर्वक सेवा की और साथ ही 'जैन प्रकाश' साप्ताहिक होगा ऐसी आशा है। (हिन्दी-गुजराती) पत्रिका का सफलतापूर्वक संपादन किया। . श्री शान्तिलाल वनमाली शेठ का जन्म सौराष्ट्र के मोस्को (रशिया) में आयोजित विश्वशान्ति परिषद् में जेतपुर नगर में ता० २१-५-१९११ को हुआ था। उन्होंने उन्होंने जैनधर्म का प्रतिनिधित्व किया और जैनधर्म के माध्यमिक शिक्षण लेने के पश्चात् श्री अखिल भारतीय श्वे० 'साम्यभाव' पर मननीय प्रवचन दिया। स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेरन्स द्वारा स्थापित जैन ट्रेनिंग कोलेज आचार्य काकासाहेब कालेलकर की सुप्रसिद्ध संस्थामें अध्ययन किया और तत्पश्चात् पं० बेचरदासजी, प्रज्ञाचक्षु गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा एवं विश्व समन्वय संघ के पं० सखलालजी, आचार्य जिनविजयजी जैसे विद्यापुरुषों तथा व्यवस्थापक के रूप में १० वर्ष पर्यन्त सेवा दी और गांधीजी महात्मा गांधी, काकासाहेब कालेलकर, आचार्य कृपलानी की सर्वोदय विचारधारा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय योगदान जैसे राष्ट्रनेताओं के संपर्क में रहकर शिक्षण और समाज-सेवा दिया। के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा प्रदान की। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ इस प्रकार साम्प्रदायिक ग्रन्थियों से मुक्त, समन्वयदृष्टिठाकर की विश्वभारती-शान्तिनिकेतन जैसी विश्रुत विद्या- संपन्न, विश्वबन्धुत्व की भावना से भावित, राष्ट्र, समाज संस्था में रहकर उन्होंने जैनधर्म, बौद्धधर्म और हिन्दूधर्म का और धर्म के उत्थान के लिए जीवन समर्पित, सर्वोदय-प्रवृत्तियों तुलनात्मक अध्ययन किया और वहाँ के वातावरण का लाभ में श्रद्धाशील एवं कार्यशील, विज्ञान और साहित्य के विपुल उठाकर अपनी 'समन्वयदृष्टि' का विस्तार किया। परिशीलन से परिष्कृत, विवेकबुद्धिशील इस 'प्रज्ञापुरुष' का श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम-बनारस विश्वविद्यालय में सन् सम्मान वास्तव में समग्र समाज का ही सम्मान है-ऐसा १९५० पर्यन्त उन्होंने संचालक के रूप में कार्य किया। यहाँ पर कहा जाय तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उन्होंने 'जैन कल्चरल रिसर्च सोसायटी' की स्थापना की और अनुवादक-रामनारायण जैन, दिल्ली जैन-संस्कृति, साहित्य, धर्म और दर्शन विषयक पुस्तिकाओं वात्सल्यमूर्ति श्री शान्तिभाई लेखक :-डा० बी० यु० पारेख एम० ए०, एम० एड०, पी-एच० डी०, अहमदाबाद श्री शन्तिभाई शेठने अपने जीवनके ७५ यशस्वी वर्ष पूरे होती हुई सभी प्राणियों के प्रति वात्सल्य की ऊमि तरंगित कर लिए है और इसी कारण उनका अमृत महोत्सव मनाया होती हई आज, 'मित्ती मे सव्वभूएस' सभी प्राणियों के प्रति जा रहा है यह बहुत ही हर्ष का विषय है। श्री पार्श्वनाथ मैत्रीभाव है, किसी के साथ वैरभाव नहीं है—ऐसी विश्वविद्याश्रम, बनारस जैसी अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्या- वात्सल्य के रूप में-'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना को संस्था अमतोत्सव का आयोजन कर रही है यह और भी जीवन में उतार कर, आज 'विश्व-मानव' बन गये हैं । ऐसे गौरव की बात है। वात्सल्यमूर्ति विश्वमानव श्री शांतिभाई का इस पावन पर्व विद्या-संपन्नता के कारण उनका सत्कार-सम्मान करना पर मैं उनका अभिनंदन के साथ अभिवंदन करता हूँ। साहजिक है लेकिन उनके जीवन में संस्कृति, साहित्य, तत्त्वज्ञान श्री शांतिभाई सौम्य, सरल एवं सौजन्यमूर्ति हैं । उनकी आदि विद्या के प्रति उनकी सन्निष्ठा तो है ही लेकिन समाज- धर्मपत्नी दया बहिन भी संस्कारी एवं धर्मप्रेमी महिला हैं। सेवा के अतिरिक्त उनके जीवन में जो 'वात्सल्यभावना' ओत- शांतिभाई की सेवा-प्रवृत्तियों में उनका सक्रिय सहयोग सदा प्रोत है-वही उनके जीवन की विशेषता है। जैसे नदी के रहा है। वास्तव में श्री शांतिभाई के सेवाकार्यों की प्रेरणामूर्ति जल में एक कंकर फेंकने से जल में वर्तल बनता है और वह उनकी धर्मपत्नी ही हैं। तरंगित होता हुआ, वह वर्तुल विस्तृत बनता हुआ, नदी के अब यह धर्मप्रिय दंपती राष्ट्र, समाज एवं धर्म की सतत दूसरे किनारे तक पहुँच जाता है.--यह है जल-तरंग का सेवा करने के लिए स्वास्थ्यपूर्ण सूदीर्घ यशस्वी जीवन यापन विस्तृतीकरण । ऐसे ही शांतिभाई की वात्सल्यभावना कुटुंब- करें-यही अभ्यर्थना। वत्सलता, समाज-वत्सलता, राष्ट्र-वत्सलता के रूप में विस्तृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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