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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जैन समाज के सशक्त जागरूक प्रहरी प्राचार्य पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य हमारे नगर के गौरव एवं सम्मानित व्यक्ति थे। अखिल भारतवर्ष में आपकी कीर्ति व्याप्त थी। विनम्रता के धनी - "विद्या ददाति विनयं" की उक्ति को चरितार्थ करने वाले डॉ. पं. दयाचंद जी विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे। आप जैन जगत में धार्मिक, सामाजिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहे है । अपनी मृदुलवाणी, सरल सौम्य व्यवहार से आप प्रत्येक मिलने वाले व्यक्ति को अपना स्वजन, आत्मीय बना लेते थे। आपका सदा सर्वत्र सम्मान होता रहा है। सचमुच जैन शिक्षण संस्थाओं / विद्यालयों में अध्यापन कार्य करने वाले जैन विद्वान कितने अल्पारभ्भी एवं आत्मसंतोषी होते है। इसकी जीती जागती प्रतिमूर्ति थे पंडित जी । इनके व्यक्तित्व पर ये पंक्तियाँ पूरी तरह लागू होती है - कितना मृदु जीवन है इनका और सभी तत्वों का ऐसा सुधर समन्वय, प्रकृति कह रही हो मानो यही थे एक वास्तविक मानव, एक जीवंत इंसान प्रभावशाली ओजस्वी वक्ता - आप तत्ववेत्ता, धैर्यविद एवं ओजस्वी वक्ता थे । आप गहन से गहन विषय को सरल पद्धति से समझाकर जनमानस को हृदयङ्गम करा देते थे। वास्तव में पंडित जी सरल, सहज एवं गाम्भीर्य में समुद्र के समान थे। आपने अनेक लेख तथा धार्मिक रचनाएं की है। आपका व्यक्तित्व एवं कृतित्व सदा सर्वदा सराहनीय है। ऐसे गुरुवर आज हमारे बीच नहीं है पर उनकी स्मृतियाँ हमेशा विद्यमान रहेंगी। मैं उनके चरणों में अपनी विनम्र विनयांजलि समर्पित कर अपने आपको धन्य एवं कृतज्ञ मानता हूँ। शुभकामना संदेश पं. जयकुमार शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य नारायणपुर (बस्तर) जैन समाज के पुरानी पीढ़ी के आर्ष मार्गी विद्वानों में सरस्वती पुत्र, शिक्षण कला के धनी, अपने शिष्यों से पुत्रवत् स्नेह करने वाले, निःस्पृहि, विद्वान डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य शिक्षा के लिए समर्पित विद्वान थे । उनकी स्मृति में "साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ" स्मृति ग्रंथ प्रकाशन समिति द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। वह निश्चित ही स्तुत्य कार्य है। मैं ग्रंथ प्रकाशन हेतु अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ। (37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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