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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ विरागता से मुक्ति पं. अमृतलाल जैन प्रतिष्ठाचार्य, दमोह विगत: राग: यस्य स: वीतराग: जिसका राग नष्ट हो गया है वही वीतरागी कहे जाते है इससे भगवान को वीतराग कहते है। उनकी ही अष्ट द्रव्य से पूजा होती है । अन्य देवों की नहीं। भगवन श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने लिखा है : भववीजांकुरजलदा: रागाद्या:क्षयमुपागता: यस्य । ब्रह्मा वा विष्णु र्वा, हरि जिनो वा नमस्तस्मै ॥ संसार रूपी बीज के अंकुर को पैदा करने वाले मेघों के समान जिनके रागादिक नष्ट हो गये हैं ऐसे जिन को नमस्कार करता हूँ। चाहे ब्रह्मा, विष्णु हरि, जिन कोई भी होवें। रागादिक को ही संसार का कारण माना है जब तक राग रहेगा वीतरागी नहीं बन सकता। "मेरी भावना" में भी यही बात कहीं है : "जिसने राग द्वेष, कामादिक, जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निष्पृह हो उपदेश दिया।" बुद्ध वीर जिन हरिहर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो या चित्त उसी में लीन रहो। श्री आदिनाथ से श्री महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों की भक्ति भाव से पूजा अर्चना करते हैं मस्तक झुकाते हैं। मूर्ति तो धातु, पाषाण, सोने, चाँदी,स्फटिक, हीरा, मणि की क्यों न होवें पर अटूट श्रद्धा से मूर्ति में मूर्तिमान देव मानकर पूज्य मानते हैं । भगवान मानते है पूजा करते हैं । कहा भी है : नास्तिक को मंदिर में पत्थर दिखता है, आस्तिक को भगवान की मूर्ति दिखती है। मगर भक्त को तो साक्षात् भगवान दिखता है। सदैव मूर्तिमान का दर्शन करता है । जैसे - एकलव्य को मिट्टी की मूर्ति में गुरु दिखते थे इससे सब विद्या सीख ली। उत्तम धनुषवाण में निपुण हो गया था। उसी प्रकार जिन भव्य जीवों ने 'सच्ची श्रद्धा' के साथ वीतराग भगवान की छवि देखकर निज आत्मा में निज का दर्शन किया है एवं अपने “ध्रुव पारिणामिक स्वभाव भाव" का आलम्बन लिया है। वे ही अनंत गुणधारी परमात्मा के समान परमात्मपद को प्राप्त कर लेते थे। मोक्षगामी बन जाते हैं। जो जीवन को जागृत कर दें, उसे जिनदर्शन कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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