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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जैन सिद्धांत पारगामी महा मनीषी डॉ. श्रेयांस कुमार जैन अध्यक्ष अ.भा.दि. जैन शास्त्री परिषद जैनागम और सिद्धांत के ज्ञाता विद्वान अंगुलियों पर गिने जाते है ।इन विरल विद्वानों में पंडितप्रवर डॉ. दयाचंद जैन साहित्याचार्य सागर का नाम सुविश्रुत है। पंडित जी का जीवन सादा था किन्तु पुस्तकें और लेखनी उसे असाधारण बनाये रखीं। विद्यार्थियों को गणेश वर्णी दि. जैन महाविद्यालय सागर में पढ़ाते हुए भी अपने अनेक सिद्धांत सम्मत शोधात्मक लेख लिखे जिनको समस्त विद्वत्समुदाय ने सराहा है । आलेखों के साथ साथ ग्रंथों के अनुवाद /सम्पादन / लेखन में सतत संलग्न रहे। संस्कृत साहित्य के अध्यापन द्वारा महाविद्यालय के प्राचार्य पद के उत्तरदायित्व का बखूबी से निर्वाह करते हुएआगम और अध्यात्म विषयक अध्ययन और लेखन पंडित जी की विलक्षण प्रतिभा की फलश्रुति है। पंडितप्रवर के इसी प्रतिभा वैशिष्टय ने हमें प्रभावित किया हुआ था । पंडित जी के सद्प्रयत्न से मोराजी के प्राङ्गण अ.भा.दि. जैन शास्त्री परिषद का विशाल प्रशिक्षण शिविर और अधिवेशन 1993 में आयोजित हुआ था जिसमें विद्वानों को अधीती विद्वान के द्वारा जो मार्गदर्शन मिला था वह मेरी स्मृतियाँ संजोए हुए हैं। हम सभी ने तभी शास्त्री परिषद की ओर से पंडित श्री को सम्मान और पुरस्कार प्रदानकर अपनी विनय प्रगट की थी। उनकी विद्वत्ता और सरलता ने उन्हें विशेष प्रतिष्ठा प्रदान की हुई थी।ठीक ही वैपश्चित्यं हि जीवाना या जीवित मभिनन्दितम् । अपवर्गेऽपि मार्गोऽय, मदः क्षीर मिवौषधम् ॥ विद्वत्ता मनुष्य के लिए जीवन पर्यन्त प्रतिष्ठाजनक होती है और जिस प्रकार दुध पौष्टिक होने के साथ साथ औषधि रूप भी है उसी प्रकार विद्वत्ता भी लौकिक प्रयोजन साधक होती हुई मोक्ष का कारण बनती है। विद्वानों में उनका विशेष सम्मान उनके गुणों का ही वैशिष्टय है । पंडित जी का शास्त्रीयज्ञान और व्यक्तित्व निश्चित ही अभिनंदनीय था।पंडित जी के जीवनकाल में उनका अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित नहीं हो सका किन्तु उनके शिष्यों के अध्यवसाय से स्मृति ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है यह प्रसन्नता का विषय है गुणीजन के गुणानुवाद पूर्वक कृतज्ञता तो व्यक्त की जा रही है। इस प्रसंग में जैन श्रुताभ्यासी विद्वत्प्रवर डॉ. दयाचंद साहित्याचार्य के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ पंडित जी श्रद्धा और आदर के योग्य थे ही क्योंकि जो विद्वान है और जिन्होंने शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की है वह लोकद्वय पूज्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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