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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ हुए पशुओं का करूण क्रंदन सुनकर उन्होंने होने वाले अपने छोटे साले से पूछा कि इन प्राणियों को क्यों बांध रखा है ? तब उत्तर में उसने बतलाया है कि बारात में आये हुए मांसाहारी बारातियों के भोजन हेतु इनका वध किया जायेगा। तब नेमिनाथ ने यह विचारकर कि मेरे विवाह के लिए इतने बेकसूर प्राणियों का वध किया जाये यह उचित नहीं है और उन्हें उसी क्षण वैराग्य हो गया तथा वे निकटस्थ गिरिनार पर्वत पर चले गये, जहाँ उन्होंने जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली । जब यह बात कुमारी राजुल को ज्ञात हुई तो वे भी उन्हें खोजते हुए गिरिनार पर्वत पर जा पहुँची और उन्हें मनाने का प्रयास किया, किन्तु जब नेमिनाथ वापिस आने को तैयार नहीं हुए तो उन्हें भी वैराग्य हो गया और राजुल ने दीक्षा ग्रहण कर आत्म - कल्याण करने का संकल्प ले लिया। जब यह बात नारायण श्रीकृष्ण को ज्ञात हुई तो उन्होंने द्वारिकानगरी में घोषणा कर दी कि जो भी स्त्री पुरुष अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहते हैं, वे भगवान् अरिष्टनेमि के पास ऊर्जयन्त पर्वत पर जाकर दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं । इस घोषणा को सुनकर उनके रनिवास में धर्मभाव की लहर दौड़ गई तथा रूकमणी आदि रानियाँ और प्रद्युम्नकुमार आदि राजकुमार भगवान् अरिष्टनेमि की वंदना करने गिरिनार गये। वहाँ उनके जय जयकारों से दशों दिशायें गूंज गई और शीघ्र ही अठारह हजार पुरुषों ने भगवान् अरिष्टनेमि के चरणों में दीक्षा ग्रहण कर मुनिव्रतों को धारण कर लिया । साथ ही चालीस हजार स्त्रियों ने भी दीक्षा ग्रहणकर आर्यिका के व्रतों का पालन करना प्रारंभ कर दिया। कालांतर में उग्र तपस्या के फलस्वरूप भगवान् नेमिनाथ एवं सम्बुकुमार, प्रद्युम्नकुमार और अनिरूद्धकुमार आदि के साथ ही कुल बहत्तर करोड़ सात सौ मुनिराजों ने क्रमशः इस पवित्र गिरिनार पर्वत से मुक्ति को प्राप्त किया । आर्यिका राजुल ने भी आयु समाप्त होने पर शरीर को त्यागकर सोलहवें स्वर्ग को प्राप्त किया। - इस प्रकार गिरिनार पर्वत को भगवान् नेमिनाथ सहित बहत्तर करोड़ सात सौ मुनिराजों की निर्वाण भूमि होने का महान गौरव प्राप्त है अत: इस निर्वाणक्षेत्र की वंदना एवं पूजा करना प्रत्येक जैनधर्मावलम्बी का परम कर्तव्य है। जिनप्रभसूरिकृत विविधतीर्थकल्प नामक श्वेताम्बर ग्रंथ में गिरिनार को रैवतगिरि अथवा ऊर्जयन्तगिरि के नाम से उल्लिखित किया गया है। उसमें भगवान् नेमिनाथ से संबंधित चार स्थानों का उल्लेख है । उक्त ग्रंथ के अनुसार भगवान् नेमिनाथ ने छत्रशिला के पास दीक्षा ग्रहण की थी। सहस्राम्रवन में उनको केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। लक्खाराम में उन्होंने देशना दी थी और अवलोकन शिखर से वे मुक्त हुए थे। इससे स्पष्ट है कि भगवान् नेमिनाथ के दीक्षा कल्याणक, ज्ञान कल्याणक और मोक्ष कल्याणक - ये तीन कल्याणक गिरिनार पर्वत पर सम्पन्न हुए थे। यह बात अलग है कि गिरिनार पर्वत अत्यंत विशाल होने से उसके भिन्न-भिन्न शिखरों को उन्होंने अपनी तपस्या का केन्द्रबिन्दु बनाया था। अत: यह गिरिनार पर्वत मङ्गलस्वरूप है। तिलोयपण्णत्तीकार ने जिन मङ्गलों का उल्लेख किया है, उनमें क्षेत्र मङ्गल के रूप में ऊर्जयन्त अर्थात् गिरिनार का उदाहरण के रूप में उल्लेख किया है।' स्तुति के रूप में गिरिनार का सर्वप्रथम उल्लेख दश-भक्तियों के अंतर्गत तीर्थङ्करभक्ति एवं 534 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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