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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ "समीक्षा" जैन पूजा काव्य एक चिंतन डॉ. पं. दयाचंद जैन, साहित्याचार्य (म.प्र.) प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली अभय कुमार जैन __ सेवा निवृत्त - प्राचार्य, बीना (म.प्र.) यह एक शोध कृति है, जिसे साहित्याचार्य पं. दयाचंद जी ने शताधिक (160) हिन्दी, संस्कृत प्राकृत एवं अंग्रेजी के ग्रंथों का अध्ययन, आलोडन- विलोडन करके बड़े परिश्रमपूर्वक लिखा है । यह विषय का समीक्षात्मक अध्ययन है । इस कृति पर पंडित जी को सागर विश्वविद्यालय से “डाक्टरेट" की उपाधि प्राप्त हुई थी। इस विशिष्ट कृति में जैन पूजा काव्यों के उद्भव एवं विकास को दर्शाते हुए जैन पूजा काव्यों के विविधरूपों और आयामों का वैज्ञानिक पद्धति से सप्रमाण सुविस्तृत विवेचन किया गया है। हिन्दी, संस्कृत प्राकृत काव्यों में छंद - रस-अलंकारों को सोदाहरण प्रस्तुत करते हुए जैन पूजा काव्यों में रत्नत्रय, संस्कार, पर्व, तीर्थ क्षेत्र और प्रयुक्त मण्डलों का भी विभिन्न अध्यायों में वर्णन है । परिशिष्ट एक एवं दो में हिन्दी के (250) और संस्कृत के (300) अप्रकाशित - प्रकाशित ग्रन्थों की सूची दी गई। परिशिष्ट तीन में 160 सन्दर्भ ग्रंथों की सूची तथा परिशिष्ट चार में प्रयुक्त मण्डलों का संक्षिप्त विवरण है। जिन पूजा भक्ति और गुणीजनों की संगति से गुणों का विकास और दुर्गुणों का निरसन नियमत: होता है अत: लौकिक कार्यों से उत्पन्न दोषों को दूर करने के लिए परमात्मा की पूजा स्तुति,गुण - संकीर्तन आदि कर्तव्यों को करना आवश्यक है। जिन पूजा भक्ति से मानसिक शुद्धि, श्रेयोमार्ग की संसिद्धि, इष्ट मार्ग की प्राप्ति, शिष्टाचार का पालन, कृतज्ञता ज्ञापन होने के साथ-साथ भगवान में परलोकादि के अस्तित्व में भक्त की आस्तिकता भी द्योतित होती है । परमात्मा की सन्निधि में ही मानव महान बनता है और परमात्मा के समान ही श्रेष्ठ गुणों को पा लेता है। साहित्य संस्कृति, कला और पुरातात्त्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह कृति जैन पूजाकाव्यों के अन्वेषकों | अध्येताओं के लिए बहुत उपयोगी है। सभी धर्म प्रेमियों, शोधार्थियों, दार्शनिकों, चिंतकों, मुमुक्षुओं, विद्वान मनीषियों के लिए भी पठनीय है तथा पुस्तकालयों/वाचनालयों में संग्रहणीय है। समीचीन श्रद्धा ज्ञान सदाचार सत्य संयम विनय आदि की प्राप्ति के लिए अज्ञान को दूर करने के लिए तथा पूजा भक्ति, उपासना अर्चना को समझने के लिए इस कृति को अवश्य पढ़ना चाहिए। ___पं. श्री दयाचंद जी साहित्याचार्य पुरानी पीढ़ी के एक यशस्वी मनीषी विद्वान थे। भौतिक शरीर से यद्यपि अब वे हमारे बीच नहीं है, पर अपने यश: शरीर से चिरकाल तक स्मरण किये जायेंगे। अपने कृतित्व से सदा अमर रहेंगे। उनके प्रति हम श्रद्धावनत है। -529 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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