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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ हमें महावीर को नमन ही नहीं उनका अनुकरण भी करना चाहिए। महावीर स्वामी ने आगे और कदम बढ़ाये घर का त्याग कर वन को चले गये। दीक्षा अंगीकार कर ली आत्मा का ध्यान करने में तत्पर हो गये 12 वर्ष तक कठोर साधना करते रहे । कर्मों का नाश करते गये और केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया। केवल ज्ञान का अर्थ पूर्ण ज्ञान है । जिस ज्ञान में संसार के सभी द्रव्य गुण और समस्त द्रव्य गुणों की समस्त अवस्थायें झलकने लगती हैं वह केवलज्ञान होता है। ऐसा केवल ज्ञान वारह वर्ष की साधना के फलस्वरूप तीर्थंकर महावीर को प्राप्त हो गया। केवल ज्ञान होने पर भ. महावीर ने समवशरण सभा में धर्म का उपदेश दिया, कल्याणकारी दिव्य संदेश दिये । महावीर प्रभु के संदेश इतने महान और विराट रहे है जिससे सभी समस्याओं का समाधान मिलता है। आज दुनिया में सर्वत्र अशांति है, कलह है, वैमनस्यता है, पाप है अत: सब दुखी है । यदि महावीर प्रभु की देशना से मिले संदेश को हम आंशिक रूप से भी अंगीकार कर ले, तब न अशांति रहेगी, न कलह, न वैमनस्यता और न कोई पाप । प्रभु ने अहिंसा का संदेश दिया इसे यदि सभी अंगीकार कर ले तो न पुलिस चाहिए, न मिलेट्री और अन्य कोई सुरक्षा | महावीर ने सत्य का संदेश दिया इसे हम सभी आंशिक रूप से भी अंगीकार कर ले तो न्याय की समस्या न होगी, न न्यायालय की आवश्यकता । अचौर्य का संदेश दिया इसे हम सभी अंगीकार करले तो न चोर रहेंगे, न चोरियाँ होगी। घर में न ताला लगाना होगा न ही चौकीदार होगा। ब्रह्मचर्य का संदेश दिया यदि इसे हम सभी अंगीकार कर ले तो न कोई एड्स जैसे रोग होंगे और न ही जनसंख्या वृद्धि होगी। जनसंख्या वृद्धि की समस्या स्वयमेव दूर हो जायेगी। अपरिग्रह का संदेश दिया प्रभु महावीर ने आज परिग्रह के कारण हार्ट अटैक जैसी घटना आम बात हो गयी है। जहाँ एक तरफ वस्तु बेकार रखी रहती है। वहीं दूसरी तरफ वस्तु का अभाव दिखता है । एक व्यक्ति को खाने को अनाज नहीं है। वहीं हजारों टन अनाज गोदामों में ही रखा - रखा सड़ जाता है। अपरिग्रह के प्रयोग से वस्तु का विकेन्द्रीकरण सहज संभव होता है। आज के युग में महावीर और महावीर सिद्धांतों की परम आवश्यकता है। महावीर प्रभु ने कहा वाणी में स्याद्वाद होना चाहिए स्याद्वाद का अर्थ किसी अभिप्राय से किसी विवक्षा से एक धर्म का कथन करने वाली शैली, जैसे तीन भाई है उनमें बीच का भाई बड़े भाई की अपेक्षा छोटा है और छोटे भाई की अपेक्षा बड़ा है एकांत से बीच का भाई न छोटा है न ही बड़ा है वह तो छोटा भी है और बड़ा भी। महावीर प्रभु ने कहा विचारों में अनेकांत रखे। परस्पर विरोधी अनेक धर्मो को स्वीकार करने वाली दृष्टि अनेकांत है । संसार में सभी गुण होते है। और दोष भी होते है। हमारी दृष्टि गुण ग्रहण करने की होनी चाहिए, जैसे कड़वी तुम्बी कड़वी होने से अनिष्ट है। पर औषधि का कार्य करने से इष्ट (ठीक) भी है। यही अनेकांत समझों। ऐसी दिव्य देशना देने वाले भगवान महावीर ने इस भारत भूमि पर वैशाली (बिहार) नगर में जन्म लिया यह हम सभी भारतवासियों को महान गौरव की बात है। उक्त सिद्धांतों को दैनिक जीवन में हम सभी धारण कर पालन करें यही आज की मांग है । महावीर प्रभु के प्रति कृतज्ञता है। अहिंसा परमो धर्म की जय, भगवान महावीर की जय ॥ -51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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