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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ तीर्थंकर महावीर - मुनि निर्णय सागर यह संसार, जीव, पुद्गल,धर्म,अधर्म, आकाश और काल इन 6 द्रव्यों से युक्त है। संसार को न किसी ने बनाया और न ही कोई नष्ट करने वाला है । अत: संसार का न आदि है और न अंत है, संसार अनादि निधन है। 6 द्रव्यों में जानने दखने वाला जीव द्रव्य है। स्पर्श,रस, गंध, और वर्ण वाला पुद्गल द्रव्य कहलाता है। चलने वाले जीव पुद्गल को चलने में जो सहकारी हो वह धर्म द्रव्य कहलाता है। जैसे रेल के लिए पटरी। रूकते हुए जीव पुद्गल को रूकने में जो सहकारी होता है वह अधर्म द्रव्य कहलाता है । जैसे पंछी के लिए वृक्ष की छाया । जहाँ जीवादि 6 द्रव्य रहते है वह आकाश द्रव्य है। जिसके निमित्त से द्रव्यों में परिणमन होता है वह काल द्रव्य कहलाता है। जिसमें गुण और पर्याय रहते वह द्रव्य कहलाता है। उपरोक्त जीवादि द्रव्यों में पुद्गल रूपी द्रव्य होने से हम जैसे अल्प ज्ञानी का आसानी से विषय बन जाता है । जबकि शेष द्रव्य सर्वज्ञ (पूर्णज्ञानी) के ही विषय बनते है । जैन धर्म में ऐसे सर्वज्ञ को परमात्मा, भगवान, आप्त आदि अनेक नामों से स्मरण किया जाता है। जैन धर्मानुसार कोई भी भगवान संसार अथवा संसार के किसी भी द्रव्य (वस्तु) को बनाते बिगाड़ते नहीं है। क्योंकि द्रव्य अनादि निधन है। भगवान (सर्वज्ञ) द्रव्य गुण और पर्याय को जानते देखते है । ऐसे भगवान (सर्वज्ञ) अनंतानंत हुए है आगे भी होते रहेंगे । परन्तु सबको जानकर यथार्य प्रतिपादन करने वाले मुख्य रूप से तीर्थंकर होते है। तीर्थंकर वस्तु को संसार को बनाने वाले चलाने वाले नहीं अपितु सही-सही बताने वाले है। ऐसे भगवान ऋषभनाथ से लेकर भगवान महावीर तक 24 तीर्थकर हुए है । यहाँ एक रोचक प्रसंग यह भी है कि तीर्थकर महावीर से ज्येष्ठ वरिष्ठ भगवान राम हुए है। तीर्थंकर महावीर के लाखों वर्ष पूर्व भगवान राम ने सर्वज्ञ अवस्था प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया है। जिनका जन्म महोत्सव भी 4 दिन पूर्व चैत्र सुदी नवमी को हुआ है। आज चैत्र सुदी त्रयोदशी है। आज के ही दिन लगभग 2600 वर्ष से भी पूर्व बालक महावीर ने जन्म लिया था। संसार में जन्म तो सभी का होता है। पर वह बहुत बिरली आत्मा होती है जो जन्म लेकर पुन: जन्म नहीं लेती है। जन्म लेकर सर्वज्ञ होकर मोक्ष प्राप्त कर लेती है। इसमें भी तीर्थंकर वह बनते है जो सारे जगत को एक ही परिवार मानते है। सारे जगत के जीवों को प्रेम करूणा की सतत् वर्षा करते रहते है। इस जगत हितैषी महा उज्ज्वल भावना का फल तीर्थंकर होना है। जब तीर्थंकर बालक गर्भ में आता है। तब तीर्थंकर की माता को सुन्दर - सुन्दर 16 स्वप्न आते है। जो विश्व कल्याणी आगामी तीर्थंकर के गर्भ में आने का संकेत करते है। देव और मनुष्य महोत्सव मनाते है जिसे गर्भ कल्याणक कहा जाता है । देवलोक से आकर 56 कुमारियां माता की सेवा में संलग्न रहती है। गर्भ में आने के 6 माह पूर्व से 15 माह तक रत्नों की प्रतिदिन वर्षा होती है। जो देव लोग करते रहते है। इसके उपरांत जब गर्भ अवस्था के 9 माह पूर्ण हो जाते है । तब तीर्थंकर बालक का शुभ मुहूर्त में जन्म होता है। जन्म के समय में भी देव मनुष्य महा महोत्सव मनाते है। जिसे जन्म कल्याणक कहा जाता है । कल्याणक का अर्थ है जिस निमित्त से जीव अपना कल्याण करते है। जब सामान्य माता एक बालक को जन्म देती है तो उसके स्तनों में दूध भर जाता है। तब तीर्थकर -510 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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