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________________ कृतित्व / हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ चलने का उनमें ही सुचारू अभ्यास है। अपने आराध्य देव की अभ्यर्थना के उपरांत प्रसाद के रूप में मिलने मिठाई के टुकड़े को जो तत्काल खा जाते हैं। और जिनके दर्शन में आत्मलीनता को सुख नहीं बताया उनके वश से यह बाहर की बात है । परिणाम में अनुरोध किया जाता है कि जिनेन्द्र के अनुयायियों से कि आप युग धारा में न बह जाइये अपने उच्च आदर्शो को न केवल न भूल जाइये अपितु उन्हें प्राप्त करने में दृढ़ता पूर्वक लोभ के परिणाम नियमन करके औरों के लिए अनुकरणीय बनिये | अपने व्यवहार और आचार में नियत रहित पाप के बाप के समक्ष अपना मस्तक न झुकाइये और कठिनाईयाँ सहन करके अपने नियत परसेंटेज से जो अधिक लाभ कभी न प्राप्त करिए तथा अपने जो बन्धु इस मार्ग में चलायमान हो गये हों या हो रहे हों उन्हें समझाकर सही मार्ग पर स्थिर कर दीजिए यह तो हुई करणी की बात । दूसरा उपाय है कथनी का, तत्सम्बन्ध में वीतराग गुरूओं से नम्र निवेदन है कि उपेक्षा भाव दूर रख कर आप भारत का नैतिक स्तर ऊँचा करें। आपका उपदेश प्रभावशाली होगा, जन साधारण को मुक्त रूप से आप त्याग मार्ग पर योजित करें। जिस काल रोगी को औषधि की आवश्यकता है उसी काल चिकित्सा होना आवश्यक है न कि रोग के असाध्य हो जाने पर । तदर्थ आप आम सभाएँ लगावें । Jain Education International 376 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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