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________________ कृतित्व / हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अपि च- अवसर्पिणीकाल के अन्त में ज्येष्ठ कृष्णा एकादशी से आषाढ़ शुक्ला 15 तक 49 दिन भरत और ऐरावत क्षेत्रों में प्रलय क्रांति भयंकरता से होती है तत्पश्चात् उत्सर्पिणीकाल के प्रारम्भ में श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से भाद्र शुक्ल 4 तक 49 दिन घृत, दुग्ध आदि श्रेष्ठ वस्तुओं की वर्षा से प्रलयताप की शान्ति होती है। प्रलय से भयभीत तथा विविध दुःखों से पीड़ित हिंसक वृत्ति अशान्त मानव को भाद्र शु. 5 से जीवन शुद्धि तथा आत्महित के लिए क्षमा आदि दश धर्मो का उपदेश दिया जाता है। यहाँ से भी पयूषण पर्व का उदय होता रहता है। इसी प्रकार अनादिकाल से उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी कालों में सदैव दश लक्षण पर्व की विकास परम्परा होती रहती है । इसी दृष्टि से यह पर्व अनादि और नैसर्गिक है । काल का प्रभाव सदैव चेतन तथा अचेतन द्रव्यों पर होता रहता है। पर्व एक पवित्रकाल है जिसका प्रभाव मानव पर अवश्य ही होता है। उसके निमित्त से आत्मा स्वयं उत्तमक्षमादि गुणों को धारण कर पवित्र होता है। पर्व एक सबल इन्जेक्शन का काम करते हैं जिससे मोह निद्रा से प्रथम भ्रष्ट मानव श्रद्धा ज्ञान तथा चारित्र के विकास की प्रेरणा और सतर्कता प्राप्त करता है। अतएव दशलक्षण महापर्व जैसे पवित्र निमित्त की विश्व को, राष्ट्रों को एवं मानवों को अत्यावश्यकता है। यह महापर्व परमात्मा का दूत जैसा है। संज्ञा और सार्थकता - जैन साहित्य में इस पर्व सम्बन्धी अनेक नाम प्रसिद्ध है जो देश में अपनी सार्थकता एवं महत्व दर्शाते हैं वे इस प्रकार है - (1) पर्वराज- अन्य पर्वो से विशेष महत्व तथा क्रान्ति का सम्पादक है। (2) महापर्व - अति प्राचीन है, दश दिनों में इसकी साधना पूर्ण होती है। ( 3 ) दशलक्षण पर्व - इसमें धर्म के क्षमा आदि दश अंगों की साधना होती है । (4) पर्यूषण - जिसमें विषय कषायों का दहन अर्थात् त्याग किया जाये । (5) पर्युपासना - जिसमें आत्मशुद्धि के लिए सब प्रकार से श्रेष्ठ साधना की जाय । ( 6 ) पर्युपवास- सर्व प्रकार से आत्मा के गुणों में लीन होना तथा आचार्य गुरू आदि की संगति करना | (7) पर्युपशमना - जिसमें पूर्ण साधना के द्वारा आत्मा के विषय कषाय आदि विकारों को शान्त किया जाय। तथा आत्म शान्ति को प्राप्त किया जाय । (8) पर्युषण - परिसमन्तात् उषयन्ते दह्यन्ते कर्माणि यस्मिन्पर्वणि इति पर्यूषण पर्व । (9) पर्यूषण - इस अपभ्रंश शब्द का उक्तार्थ है । ( 10 ) पज्जुषणा - इस प्राकृत शब्द का उक्तार्थ है । (11) पज्जसवण- रस प्राकृत शब्द का अर्थ नं. 5 के समान है। (12) सम्वत्सरी पर्व यह शब्द श्वेताम्बर समाज में प्रसिद्ध है अर्थात् जो पर्युषण पर्व सम्वत्सर (वर्ष) प्रतिक्रमण के साथ समाप्त किया जाता है । 224 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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