SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मानसिक एवं आध्यात्मिक क्रियाओं से सम्बद्ध हैं अत: जीवन में जब तक धार्मिक प्रवृत्ति का उदय नहीं होगा, रोगी का स्वास्थ्य लाभ करना कठिन है । प्रार्थना धार्मिक प्रवृत्ति पैदा करती है। आराध्य के प्रति की गई भक्ति में बहुत बड़ा आत्म संबल है। उच्च या पवित्र आत्माओं की आराधना जादू का कार्य करती है । '' उक्त उद्धहरण में भी महामंत्र की आराधना के प्रति संकेत किया गया है कि महामंत्र की पवित्र आत्माओं की प्रार्थना आत्मसंबल को बढ़ाती है। जैन दर्शन में महामंत्र के महत्व को अभिव्यक्त करने वाली आचार्यकृत अनेक रचनाएं विद्यमान है यथा णमोकार मंत्र माहात्म्य, नमस्कारकल्प, नमस्कार माहात्म्य, णमोकार मंत्र की महिमा आदि । आचार्य उमास्वामी द्वारा णमोकार मंत्र के विषय में कथित माहात्म्य, इस प्रकार है - ___ यह महामंत्र संसार में सार है, त्रिलोक में अनुपम है, हिंसा आदि सर्व पापों का नाशक है, जन्ममरण आदि रूप संसार का उच्छेदक है, सर्प आदि जीवों के तीक्ष्ण विष का नाशक है, द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म का समूह नाशक है, लौकिक एवं अलौकिक कार्यो की सिद्धि का प्रदायक है, मुक्ति सुख का जनक है, इसका ध्यान करने से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है, पुष्पदंत आचार्य द्वारा प्रणीत इस महामंत्र को प्रति समय जपते रहो । इसका शुद्ध ध्यान करने से जन्ममरण आदि 18 दोषों से मुक्ति होती है। यह महामंत्र देवेन्द्रों की विभूति का प्रदायक है, मुक्ति लक्ष्मी को सिद्ध कराने वाला, चतुर्गति के कष्टों का उच्छेदक, समस्त पापों का विनाशक, दुर्गति का निरोधक, मोह माया का स्तंभक, विषयाशक्ति का प्रक्षीणक, आत्मश्रद्धा का जाग्रतिकारक और यह महामंत्र प्राणि सुरक्षाकारक है। महामंत्र से स्वजीवन का उद्धार करने वाले व्यक्ति - 1. प्राचीन भारत के महापुरनगर में मेरूदत्त श्रेष्ठी के पुत्र पद्मरूचि नामक युवक ने, एक मरणासन्न बैल को कर्ण में महामंत्र सुनाया, बैल शरीर त्याग कर उसी नगर के नृप का वृषभ ध्वज नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। पद्मरूचि और वृषभ ध्वज दोनों मित्र, धर्म की साधना से द्विस्वर्ग में देव हुए। 2. बिहार प्रान्तीय राजगृह नगर के नृप सत्यन्धर के सुपुत्र विद्वान जीवन्धरकुमार ने एक नदी के तट पर, मरणासन्त कुत्ते के कान में, दयाभाव से महामंत्र सुनाया। मंत्र के प्रभाव से कुत्ता अगले भव में यक्षेन्द्र हुआ। यक्षेन्द्र ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए जीवन्धर के लिये तीन मंत्र प्रदान किये।" 3. वाराणसी नगरी में एक सन्यासी डूड़ जलाकर तप कर रहा था। भ्रमण करते हुए तीर्थकर पार्श्वनाथ ने अवधि ज्ञान से वहां जान लिया कि इस लक्कड़ में नाग - नागिनी का एक जोड़ा है। लक्कड़ चीर कर उन्होंने जलते हुए सर्पयुगल को णमोकार मंत्र सुनाया। मंत्र के प्रभाव से सर्प धरणेन्द्र देव और नागिन उसकी पद्मावती देवी हुई। दोनों ने मुनिराज पार्श्वनाथ का उपसर्ग दूर किया । " 4. महामंत्र के उच्चारण से सुभग ग्वाले का उद्धार - चम्पापुरी निवासी सुभग ग्वाले को निकटभव्य जानकर एक मुनिराज ने णमोकार मंत्र का उपदेश दिया। एक समय गायों की रक्षार्थ प्रवाहपूर्ण गंगा में वह कून्द पड़ा । महामंत्र का उच्चारण करते हुए उसका -219 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy