SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आधुनिक वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के ट्रांसलेटर यंत्रों का आविष्कार किया है जिससे वक्ता के एक भाषा का अनेक भाषाओं में एक साथ अनुवाद होता जाता है। लोकसभा के अधिवेशन में इसका प्रयोग होता है। इसी प्रकार भगवान महावीर की विशाल सभा (समवशरण) में उनकी ओंकार ध्वनि (दिव्य देशना) का एक साथ अनेक भाषाओं में अनुवाद होता जाता है अर्थात् सभी भाषा - भाषी मानव अपनी - अपनी भाषा में समझते जाते हैं। एक अतिशय यह भी है कि संज्ञी पंचेन्द्रिय पशु - पक्षी भी उस देशना को अपनी - अपनी भाषा में समझ लेते हैं, अन्यथा उनको आनन्दानुभव नहीं होता। जिनकी ध्वनि है ओंकार रूप, निरक्षरमयमहिमा अनूप वैज्ञानिक दृष्टि से णमोकार मंत्र का मन पर प्रभाव पड़ता है, एवं आत्मशक्ति का विकास होता है उससे पवित्रता आती है, इसी कारण यह मंत्र सर्वकार्यो में सिद्धिदायक माना गया है । इस विषय का उद्धरण भी मिलता है जैसे -"मानव मस्तिष्क में ज्ञानवाही और क्रियावाही ये दो प्रकार की नाड़ियां होती हैं । ज्ञानवाही नाड़ियाँ और मस्तिष्क के ज्ञान, केन्द्र, मानव के ज्ञान विकास में एवं क्रियावाही नाड़ियां और मस्तिष्क के क्रिया केन्द्र, चारित्र के विकास की वृद्धि के लिये कार्य करते हैं । क्रिया केन्द्र और ज्ञानकेन्द्र का घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण णमोकार मंत्र की आराधना, स्मरण और चिंतन से , ज्ञान केन्द्र और क्रिया केन्द्रों का समन्वय होने से मानवमन सुदृढ़ होता है और आत्मिक विकास की प्रेरणा मिलती है। वैज्ञानिकों ने यह भी सिद्ध किया है कि शब्दों की तरंगे (ध्वनियां) मानवों एवं पशुओ के मन में टकराती हैं अतएव उनका मानस पटल प्रभावित होता है । इसी प्रकार श्रुतज्ञानी जैनाचार्यो ने आधुनिक विज्ञान से हजारों वर्ष पूर्व यह सिद्ध कर दिया है कि महामंत्र की बीज एवं शक्ति के संयोग से उत्पन्न तरंगे (ध्वनियां) पशुओं एवं मानवों के मानस पटल में टकराती हैं, अतएव इनसे मानवों एवं पशुओं का भी हित होता है। आधुनिक वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकृत करते हैं कि बिना आत्मबल या श्रद्धा के किसी लौकिक कार्य में भी सफलता प्राप्त करना संभव नहीं है । इस विषय में अमेरिकन डाक्टर होआर्ड रस्क ने अभिमत व्यक्त किया है - "रोगी तब तक स्वास्थ्य लाभ नहीं कर सकता, जब तक वह अपने आराध्य में विश्वास नहीं करता है, आस्तिकता ही समस्त रोगों को दूर करने वाली है । जब रोगी को चारों ओर से निराशा घेर लेती है। उस समय आराध्य के प्रति की गई प्रार्थना प्रकाश का कार्य करती है. प्रार्थना का फल अचिन्त्य होता है । वह मंगल को देती है।" अमेरिका के द्वितीय वैज्ञानिक जज हेरोल्ड मेहिना का अभिमत है "आत्म शक्ति का विकास तभी होता है जब मनुष्य यह अनुभव करता है कि मानव शक्ति से परे भी कोई वस्तु है अत: श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थना बहुत चमत्कार उत्पन्न करती है।" अमेरिका के तृतीय वैज्ञानिक डॉ. एल.फ्रेंड होरी का अभिमत है - "सभी बीमारियाँ शारीरिक, -218 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy