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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ वीरो विशिष्टां विनवायरावीमिति त्रैलोकेरभिणर्य नतैय : (इत्यादि 2 श्लोक) पौराणिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्राचीन पुराण और इतिहास के विषय में एक मत हैं कि तीर्थंकर महावीर का जन्म विदेह के अन्तर्गत कुण्डग्राम में हुआ था, पौराणिक ग्रन्थों में भी तीर्थंकर महावीर का जन्म स्थान कुण्डग्राम कहा गया है। उस कुण्डपुर अथवा कुण्डग्राम की स्थिति स्पष्ट करने के लिये ही विदेह कुण्डपुर अथवा विदेहजनपद स्थित कुण्डपुर कहा गया है। इसी को कुण्डपुर, कुण्ड ग्राम अथवा कुण्डलपुर कहते है। भ. महावीर काश्यपगोत्रीय क्षत्रिय थे। अब भी उस प्रदेश में काश्यपगोत्री जथरिया क्षत्रिय विद्यमान हैं जो वस्तुत: ज्ञातृवंशी हैं और ज्ञात शब्द का ही अपभ्रंश जथरिया प्रसिद्ध हो गया। विदेह जनपद विशाल होने के कारण इसको वैशाली भी कहने लगे हैं और इतिहास में प्रसिद्ध भी हो गया है। इसलिये यह निर्णय हो जाता है कि भ. महावीर का जन्म स्थान मध्य प्रान्तीय कुण्डपुर न होकर विहार प्रान्तीय वैशाली विदेह स्थित कुण्डपुर ही है। इस विषय में दिगंबर, श्वेताम्बर और बौद्ध सभी मानव का एक मत है। वैशाली का इतिहास - वैदिक पुराणों के अनुसार वैशाली की स्थापना नृप और अलम्बुषा के पुत्र विशाल नामक राजा के द्वारा की गई, इसलिये इसका वैशाली नाम प्रसिद्ध हुआ। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार जनसंख्या बढ़ने से कई ग्रामों को सम्मिलित करके तीन बार में इसको विशालरुप दिया गया इसलिये इसका नाम वैशाली प्रसिद्ध हो गया। जैन साहित्य के अनुसार जनसंख्या बढ़ने से कई ग्रामों को सम्मिलित करके तीन बार में इसको विशाल रूप दिया गया, इसलिये इसका नाम वैशाली प्रसिद्ध हो गया । जैन साहित्य के अनुसार ब्राह्मण कुण्डपुर के ईशानकोण उत्तर-पूर्व में एक बहुशाल चैत्य था । इस नगर में ऋषभदत्त ब्राह्मण और उसकी पत्नी देवीनन्दा रहती थी, ये दोनों भ. महावीर के उपासक थे। एक बार भ. महावीर यहां पधारकर बहुशालचैत्य में अवस्थित हुए। उनके उपदेश से प्रभावित होकर विप्र दम्पत्ति ने जिनदीक्षा ग्रहण कर ली। इससे सिद्ध होता कि इस नगर के ईशानकोण में बहुशाल विशाल चैत्यालय शोभित हो रहा था । इसलिये इस क्षेत्र का नाम वैशाली प्रसिद्ध हो गया। वैशाली में तीर्थंकर महावीर से कुछ शताब्दी पूर्व से ही गजसंघप्रणाली प्रचलित थी। संभवत: गणतंत्र गणसत्ताक राज्य की स्थापना ई. सन् के लगभग सातशती पूर्व गंगा के तट पर हुई थी। इससे हुए विदेश राज्य का अन्त, जनकवंशी निभिराजा के पुत्र कलारनृप के समय में हो चुका था। इसके बाद विदेह राज्य लिच्छवियों के गणसंघ में मिल गया । इतिहास के अनुसार जनकवंश के अंतिम राजा कलार को उसके ही दुराचार के कारण. प्रबुद्ध जनता ने सदा के लिये बहिष्कृत कर दिया। तत्कालीन परिस्थिति को देखकर विदेह की जनता ने निर्णय लिया कि इस समय विदेह में राजतंत्र की स्थापना न होकर गणतंत्र की स्थापना होना जरूरी है। जिसमें जनता द्वारा शासन जनता के लिये होगा। इस निर्णय के अनुसार जनता ने विदेह में गणतंत्र राज्य की स्थापना की। उस समय वैशाली में लिच्छवि संघ का 193 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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