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________________ कृतित्वं/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ रही। 164 ई. पू. शुंगनरेशों का उज्जयिनी में अधिकार हुआ । परन्तु यहां के शासक सब धर्मो के प्रति सहिष्णु थे। कलिंग नरेश खारवेल ने मालवा पर अधिकार जमाकर अपना एक राजकुमार शासक नियुक्त कर दिया। बंगदेश में जैनधर्म भ. महावीर के समय से विद्यमान था, अनेक जैन बस्तियां थीं। गुप्तकाल में एक विशाल जैन बिहार था। छठी शती में व्हेनसांग नामक चीनी यात्री ने अनेक जैन मंदिर तथा निर्ग्रन्थ मुनि बिहार करते देखे थे। वीरभूमि, वर्धमान, सिंहभूमि, मानभूमि आदि नगरों के नाम यत्र-तत्र बिखरी हुई जैन प्रतिमायें, ग्रामों एवं निवासित जैन सराक श्रावक जाति की उपस्थिति सूचित करती है कि जैन धर्म सम्पूर्ण देश में फैला हुआ था। भ. ऋषभदेव, महावीर तथा अन्य तीर्थकरों की कितनी ही प्रतिमायें भैरव आदि देवताओं के नाम से पूजी जा रही थीं। (रतनलाल एडवोकेट जैन धर्म प्र. देहली पृ. 198- 202) लगभग सन् 1209 ई. में रटूवंश के राजा लक्ष्मीदेव की रानी श्री चन्द्रिका देवी एक धर्मवत्सला महिलारत्न थी। एक समय उन्हें घटसर्प नामक असाध्य रोग ने आ घेरा । उस समय वेणुग्राम वर्तमान-वेलगांव में रामबाग के पास चंद्रिकादेवी का उपासना गृह बनाया गया। वहां निर्मापित भ. महावीर के मंदिर में उनकी प्रतिमा विराजमान की गई। चन्द्रिका देवी निरन्तर भ. महावीर की उपासना करके रोग मुक्त हो गई। इस अतिशय के कारण वेलगांव अतिशय क्षेत्र की तरह प्रसिद्ध हो गया। (अहिंसावाणी, तीर्थंकर महावीर विशेषांकः सन् 1956 पृ. 110 अलीगंज) प्राचीन शिलालेखों में एवं स्तंभ लेखों में भगवान महावीर - भारत के विभिन्न प्रदेशों में जो शिलालेख तथा स्तंभलेख प्राचीन स्थानों से प्राप्त हुए हैं उनमें भ. महावीर के संक्षिप्त इतिवृत लिखित हैं, जिन लेखों से तीर्थ, महावीर की प्राचीनता एवं महत्ता सिद्ध होती है। इस विषय में कुछ उद्धरण इस प्रकार हैं - आडूर (धारवाड़) के कीर्तिवर्मा प्रथम (ई. 5 वीं शती)। के शिलालेख में भ. महावीर को लक्ष्य कर मंगलाचरण किया गया है - सन् 1023 ई. के मथुरा उ.प्र. वाले शिलालेख से स्पष्ट होता है कि आचार्य विजयसिंह के उपदेश से नवग्राम आदि स्थानों के श्रेष्ठ श्रावकों ने वर्धमान स्वामी की सर्वतोभद्र प्रतिमा का निर्माण कराया था। ___ सन् 1103 ई. में दानसाले के चालुक्य सामन्त महामंडलेश्वर सान्तर देवतैल, जो भ. पार्श्वनाथ के उग्रवंश के जन्मे थे, उनके शिलालेख में भ. महावीर के तीर्थ और गौतमगणधर आदि का उल्लेख है । (शिलालेख पृ. 369-370) भीनवाल में सन् 1277 का एक स्तंभलेख जयकूपझील के उत्तरीय किनारे पर है, उसमें भ. महावीर के श्रीमालनगर में आने का उल्लेख इस प्रकार है "य: पुराना महास्थाने श्रीमाले सुसमागतः । सदैवः श्रीमहावीरः। भयत्राता प्रज्ञा यं शरणं गताः । तस्य वीरजिनेन्द्रस्य पूजार्थ शासनं नवं "इस लेख को कायस्थों के नैगमकुल के बहिकाराज्याध्यक्ष श्री सुमट आदि शासकों ने भ. महावीर की वार्षिक पूजा एवं रथयात्रा के प्रसंग में उत्कीर्ण कराया था। दी गजेटियर आफ दी बम्बई प्रेसीडेन्सी भा. सं. (पू. 480) करनाटक प्रान्तीय श्रवणवेलगोल के सिद्धरवस्ती के स्तंभलेख शक सं.1320 में भ. महावीर का स्मरण दो श्लोकों में किया गया है। -192 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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