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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ इतिहास एवं पुरातत्व के आलोक में तीर्थंकर महावीर और वैशाली प्रदेश तीर्थंकर शब्द की व्याख्या - "संसार सागरं तरति अथवा संसार सागर : तिर्थते अनेन अथवा तरण मात्रं वा इति तीर्थ: । ... तीर्थ करोति इति तीर्थंकरः" इसका आशय यह है कि जो जन्म मरण रुप संसार सागर को पार करता है अथवा जिसके द्वारा संसार सागर पार किया जाय उसको तीर्थ कहते हैं अथवा जो संसार सागर को पार करना कराना मात्र है उसे तीर्थ कहते हैं और धर्मतीर्थ का जो विधान करता हैं उसे तीर्थंकर कहते है, तीर्थकर यह शब्द यथा नाम तथा गुण है अर्थात् यह शब्द पूर्णतया सार्थक है , निरर्थक नहीं है। तीर्थकर के उदय का प्रयोजन ___विश्व में तीर्थकर का उदय पवित्र जन्म अधर्म, पाप, अन्याय और दुराचार को विनाश करने हेतु एवं धार्मिकता,नैतिकता, सदाचरण और समीचीन ज्ञान के विकास के लिये होता है। साथ ही धार्मिक मानवों के संरक्षण और दुराचारी मनुष्यों के बहिष्कार के लिये होता है। पौराणिक कथन स्मरणीय है - आचाराणां विधातेन, कुदृष्टीनांच सम्पदा। धर्म ग्लानिपरिप्राप्तं, उच्चयन्ते जिनोत्तमा॥ __रविषेणाचार्य: पद्मपुराण: पर्व-5 तात्पर्य - सदाचार के विघात से दुराचारी मनुष्यों का साम्राज्य जब इस भूमण्डल में वृद्धिंगत होता है और धार्मिकता-नैतिकता रसातल में धंस जाती है उस समय लोक में तीर्थकर का उदय होता है । अतएव कृतयुग (ततयुग-चतुर्थकाल) में चौबीस तीर्थंकरों की परम्परा प्रवाहित रही है । भारतीय सम्राट अशोक शासक के चक्र में चौबीस आरे इस चौबीस संख्या के द्योतक है। इस तीर्थकर परम्परा में प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव और अन्तिम तीर्थकर महावीर हुए हैं, जिन्होंने धर्मतीर्थ का प्रवर्तन इस विशाल भूमण्डल पर किया है। आज से प्राय: 2592 वर्ष पूर्व ईशा से प्राय: 600 पूर्व, पार्श्वनाथ 23 वें तीर्थकर के निर्वाण के करीब 198 वर्ष पश्चात् विक्रमादित्य से 570 वर्ष पूर्व, मुहम्मद पैगम्बर से करीब 1180 वर्ष पूर्व गर्भ से 9 माह 8 दिन पश्चात् चन्द्रमा के उत्तरा फाल्गुनि नक्षत्र के काल में उदित होने पर, उच्चग्रहों की स्थिति में, शुभलग्न में चैत्रशुक्ला त्रयोदशी,दिवस सोमवार के प्रात: काल विहार प्रान्तीय वैशाली की कुण्डलपुर नगरी में 24 वें तीर्थकर महावीर का पुण्य जन्म हुआ। उस समय देवेन्द्रों और मानवों द्वारा जन्मकल्याण महोत्सव किया गया। पिता-महाराज सिद्धार्थ ने एवं माता त्रिशला ने अपने यौवन को महत्वपूर्ण समझा। तीर्थंकर महावीर का अस्तित्व, पुरातत्व एवं इतिहास के आलोक में चमक रहा है। जिसके प्रमाण एवं उद्धरण निम्नलिखित हैं - (189 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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