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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ सुनकर सभी भाषावादी आनन्दित होते थे, अन्यथा वे प्राणी या मानव हर्षित न होकर समवशरण से भाग जाते । उस महावीर आत्मा ने विश्वकल्याण के लिए आर्यखण्ड के 32 हजार देशों में विहार कर धर्मतीर्थ की स्थापना की।उन्होंने श्रेष्ठ अहिंसा अनेकान्त अपरिग्रह अध्यात्मवाद आदि धाराओं द्वारा सर्वोदय सिद्धांत का प्रचार तथा प्रसार किया। इस आशय को व्यक्त करने वाला एक प्राचीन ग्रन्थ का प्रमाण इस प्रकार है। काश्यां काश्मीर देशे कुरूषु च मगधे कौशले कामरूपे कच्छे काले कलिंगे जनपद महिते जांगलान्ते कुरोदौ । किष्किन्धे मल्लदेशे सुकृतिजनमनस्तोष दे धर्मवृष्टिं कुर्वन् शास्ता जिनेन्द्रो विहरति नियतं तं यजैऽहं त्रिकालम् । (प्रतिष्ठासार संग्रह) अर्थात् -काशी काश्मीर कुरू मगध कौशल कामरूप कच्छ काल कलिंगे कुरूजांगल किष्किंध मल्लदेश इत्यादि प्राचीन विशाल देशों में भव्यजनों के मानस पटल को संतोषप्रदा धर्मामृत की वृष्टि को करते हुए उपदेष्टा भ.महावीर ने विहार किया था। अत: उनकी हम त्रैकालिक वंदना अर्चा और स्तुति करते है। पांचाले के रले वाऽमृतपदमिहिरो मद्रवेदीदशार्णवंगां गाथोलिकोशीनर, मलयविदर्भेषु गौडे सुसहो । शीतांशुरश्मिजालादमृतमिव सभां 'धर्मपीयूषधारां' सिंचन योगाभिरामा परिणमयति चस्वान्तशुद्धिं जनानां ॥ अर्थात् - पांचाल केरल भद्रवेदी दशार्ण वंग अंग आथोलि कोशीनर मलय विदर्भ गोड सुसहा इत्यादि देशों में ज्ञानामृत के चंद्र उन तीर्थकर महावीर ने चन्द्र किरणों से अमृतमय झरने के समान शान्तिपूर्ण .. धर्मामृत की धारा का सिंचन करते हुए मानवों की आत्मशुद्धि को किया था। पुन्नाट चौल विषयेऽपि च पौण्ड्रदेशे, सौराष्ट्र मध्यमकलिन्द किरातकादों। सुयोग्ये सुदेशमहिते सुविहृत्य धर्म, चक्रेण मोहविजयं कृतवान् जनानाम् ॥ अर्थात् - पुन्नाट चौल पौण्ड्रदेश सौराष्ट्र मध्यम कलिन्द किरातक आदि देशों में, और भी योग्य महान् देशों से शोभित राष्ट्रों में विहार कर महावीर तीर्थंकर ने धर्मचक्र के द्वारा मोह शत्रु पर विजय प्राप्त की। (प्रतिष्ठासार संग्रह - ज्ञानकल्याण प्रकरण) भगवान महावीर के समवशरण में श्रोताओं की संख्या - गृहस्थमानव 100000 (1 लाख) श्राविकाएँ - 300000 (3 लाख) गणधर - 11 मुख्यगणधर - 1 श्रीइन्द्रभूति ऋषिगण - 14000 पूर्वज्ञानधारी मुनि 300 उपाध्यायमुनि 9900 अवधिज्ञानीमुनि - 1300 (180 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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