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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ भ. वीर की वाणी अर्धमागधी भाषा रूप अवश्य थी, पर वह किसी भाषा विशेष के अक्षर रूप नहीं थी किन्तु निरक्षरी (अन्य भाषा के अक्षरों से हीन) ओंकारध्वनि रूप सत्य, शिव, सुन्दर ध्वनित होती थी इसलिए उसको सभी भाषा भाषी मानव, देव पशु - पक्षी आदि सब ही प्राणी अपनी -अपनी मातृभाषा में समझ लेते थे उनकी दिव्य भाषा में यह महान वैज्ञानिक अतिशय था कि उस दिव्यवाणी को अनेक महादेशों के 18 महाभाषा भाषी मानव और 700 लघुभाषा वादी मानव अपनी अपनी मातृभाषा में समझ लेते थे। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि - यथाजल धरस्याम्म: आश्रयाणां विशेषत: । नानारसं भवत्येवं वाणी भगवतामपि ॥ जिस प्रकार मेघ का एकस्वमावयुक्त मिष्ट जल भूमि के भेद से तथा वनस्पतिरूप आधार के भेद से खट्टा मीठा आदि अनेक रसरूप परिणत हो जाता है उसी प्रकार भगवान की निरक्षरी भव्यवाणी भी अनेक भाषा रूप परिणत हो जाती है। जिससे सभी प्राणी सरलता से अपनी अपनी भाषा में समझ लेते हैं। उदाहरण के रूप में पशुपक्षियों की एक ऐसी जघन्य भाषा सुनने में आती है जिसमें स्वर व्यंजन अक्षर तो नहीं होते हैं पर वह ध्वनिरूप से प्रगट होने वाली एक प्रकार की भाषा अवश्य है। जो दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय,चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पशुपक्षियों के भेद से अनेक प्रकार की होती है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध किया है कि सिंह, चीता, व्याघ्र, श्याल, हिरण, रीछ, कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस, बकरी, बंदर तथा काक तोता मैना- कोयल -चिड़िया , कबूतर, आदि सभी पशु - पक्षी अपनी - अपनी भाषा में बातचीत करते हैं और उसके द्वारा दैनिक व्यवहार चलाते है। इसी प्रकार भ.महावीर की सर्वश्रेष्ठ अतिशयपूर्ण एक अर्धमागधी भाषा थी जिसमें अक्षर नहीं होते थे और वह ओंकार ध्वनिरूप से व्यक्त होती थी। जिसको सुनकर सभी प्राणी उपदेश के ज्ञान से आनंद मग्न हो जाते है। दिव्य ध्वनि का वैज्ञानिक महत्व - वैज्ञानिकों ने किसी भी वाणी को दूर तक चारों ओर भेजने के लिए ध्वनि विस्तारकयन्त्र (Loudspeaker)का आविष्कार किया है जिसका उपयोग सभा आदि कार्यक्रमों में इस समय बहुत होता है । भ.महावीर के समय में भी एक ऐसा विचित्र अतिशय रूपयंत्र था जिसके द्वारा उनकी वाणी चारों ओर सैकड़ों किलो मीटर तक विस्तृत होती थी जिसको सभी प्राणी सुन लेते थे। आधुनिक वैज्ञानिकों ने एक ऐसे अनुवादकर्ता, (ट्रान्सलेटर) यंत्र का आविष्कार किया है जो एक भाषा का अनेक भाषाओं में अनुवाद (ट्रांसलेशन) करता है जिसका उपयोग वर्तमान में विश्व की लोकसभा राज्यपरिषद् सुरक्षा परिषद् आदि सदनों की मर्यादा में होता है । जिसमें वक्ता (Speaker) एक अंग्रेजी भाषा में कहता है और उसका अनुवाद, सुनने वाले की इच्छा के अनुकूल हिन्दी आदि सभी भाषाओं में होता जाता है। भगवान वीर के समवशरण में भी एक ऐसा ही विचित्र अतिशयरूप यंत्र था कि जिसके द्वारा उनकी वाणी का अनुवाद प्राकृत - संस्कृत आदि 18 महाभाषाओं और 700 लघुभाषाओं में होता जाता था, जिसको (179 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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