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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मुनिराज या साधु महाराज अहिंसा महाव्रत की उच्च साधना करते हैं, उसमें सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर संयम की उच्च साधना होती है। पंचेन्द्रिय विषय तथा कषायों का पूर्णत त्याग होता है। ज्ञान ध्यान और तपस्या की साधना होती है। उस पद में गृहस्थ के कोई भी कर्तव्य नहीं किये जा सकते हैं । गृहस्थ और साधु की कक्षा में महान अंतर है । कर्तव्यों में भेद है। अहिंसा और राजनैतिक क्षेत्र - ___ अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि राजनैतिक क्षेत्र और राष्ट्रीय क्षेत्र में अहिंसा का क्या स्थान है। उसका प्रयोग हितकारी है या नहीं। इस महत्वपूर्ण प्रश्न के उत्तर में यही लिखा जाता है कि राजनैतिक क्षेत्र एवं राष्ट्रीय क्षेत्र में अहिंसा का स्थान प्रमुख है, उसका प्रयोग परम हितकर है। अथवा यह कहना चाहिए कि अहिंसात्मक नीति और रीति से ही राज्य शासन तथा राष्ट्रीय व्यवस्था शान्तिपूर्ण तथा प्रजाहितकर हो सकती है, हिंसा से वह संभव नहीं। अहिंसा का उपासक मानव शासन के क्षेत्र में साधारण कार्यवाहक से लेकर चक्र वर्ती तक अपना शासन क्षेत्र बना सकता है । और राष्ट्रीय क्षेत्र में नर से लेकर नारायण तक अपना क्षेत्र बढ़ा सकता है। अहिंसा उन कार्यो में बाधक नहीं हो सकती। कृतयुग (सतयुग) में ऋषभदेव आदि 24 तीर्थकर, भरत आदि 12 चक्रवर्ती, कृष्ण आदि 9 नारायण, रावण आदि 9 प्रतिनारायण, रामचंद्र आदि 9 बलभद्र - इन 63 शलाका महापुरूषों का, और मध्यकाल में मगध सम्राट श्रेणिक, स. चंद्रगुप्त, स. ऐल खारवेल, स. महामेघवाहन, महाराणा प्रतापसिंह और क्षत्रिय युवराज जीवन्धर कुमार एवं स. अशोक जैसे भारतीय वीर राजाओं के शासन तथा राष्ट्रीय क्षेत्र अहिंसा मूलक ही थे अतएव उस समय के शासन क्षेत्र तथा राष्ट्रीय क्षेत्र समृद्धि सम्पन्न और सुख शान्ति पूर्ण थे, सर्वत्र अहिंसात्मक प्रजातंत्र का झण्डा लहराता था। यदि कभी किसी शासक ने अज्ञान या प्रमाद के आधीन होकर एक मिनिट भी अहिंसा को छोड़कर अन्याय, अत्याचार आदि अधर्म को अपनाया है, तो वहाँ उन्होंने उसका कुफल प्राप्त कर अपना पतन भी किया है । इतिहास, पुराण और पुरातत्व इनके साक्षी हैं। __ स्व. महात्मा गाँधी अपनी अहिंसात्मक साधना और अहिंसात्मक आंदोलन के बल पर ही 15 अगस्त 1947 में, अनेक शताब्दियों से परतंत्र भारत को स्वतंत्र करने में और 26 जनवरी 1950 में प्रजातंत्र शासन स्थापित करने में सफल हुए थे। उन्होंने अहिंसा सत्य मूलक पंचशील के आधार पर देश का नया संविधान निर्माण कर राष्ट्रीय ध्वज को फहराया। भारत के इतिहास में यह एक अपूर्व तथा चमत्कारपूर्ण अध्याय है। ___ अहिंसा मूलक शासन में सत्य न्याय तथा सेवा प्रधान है । इसलिये न्याय की रक्षा के लिए और अन्याय एवं पापाचार का नाश करने के लिए अपराधी को दण्डित तथा आक्रमणकारी को बहिष्कृत करना कर्तव्य होता है । वह एक देश अहिंसा की एक सीढ़ी है। इस विषय में श्री रामचन्द्र जी, श्री महाराणा प्रताप, श्री जम्बुकुमार, श्री जीवन्धर कुमार आदि महापुरूषों के नाम इतिहास में उल्लेखनीय है। विक्रम की तेरहवीं शदी के प्रकाण्ड संस्कृत विद्वान श्री आशाधर जी ने गृहस्थ धर्म का व्याख्यान करते हुए कहा है - -(155) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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