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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ छोड़ना, ध्यान (आत्मा एवं परमात्मा का ध्यान चिंतन करना इन छ: अन्तरंग तपो की साधना करना ।) 15सर्वश्रेष्ठ क्षमा शान्ति को धारण करना, विद्या आदि का मद न कर नम्र होना, मायाचार का त्याग कर सरल प्रवृत्ति करना, हितमितप्रियवचन का प्रयोग करना लोभ का त्याग, संयम का पालन, इच्छाओं का निरोध, दान करना, परिग्रह का त्याग करना, ब्रह्मचर्य इन दश धर्मो की साधना करना । 16-अनित्य, अशरण,संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ, धर्म इन बारह भावनाओं का चिंतन करना । 17-क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण आदि 22 प्रकार के कष्टों को शान्तभाव से सहन करना । अहिसा के प्रायोगिक क्षेत्र -प्रथम तथा द्वितीय कक्षा के कर्तव्यों द्वारा अहिंसा का आंशिक पालन गृहस्थ नागरिक करते हैं, वह अहिंसा अणुव्रतरूप होती है। तृतीय कक्षा के कर्तव्यों द्वारा अहिंसा की पूर्ण साधना मुनिराज या ऋषिराज करते हैं अतः वह अहिंसा महाव्रत रूप होती है - अहिंसा के दूसरी प्रकार से भेद - (1) संकल्पी हिंसा (दृढ़तापूर्वक निर्दयता से की गई जीव हिंसा), (2) आरंभी हिंसा (कृषि, गृहनिर्माण, आदि कार्यो में होने वाला जीव वध,) (3) उद्योगीहिंसा (व्यापार, कारीगरी आदि कार्यो में होने वाला जीव वध), (4) विरोधी हिंसा (विरोध या बैर के कारण युद्ध उपद्रव आदि को दूर करने के लिए होने वाली जीव हिंसा),इन चार प्रकार की हिंसाओं में प्रथम संकल्पी हिंसा का ही गृहस्थ त्याग कर सकता है, अन्य तीन प्रकार की हिंसा को दूर नहीं कर सकता । कारण कि प्रथम हिंसा का मुख्य लक्ष्य दृढ विचार से किया गया जीववध ही है दूसरा कोई लक्ष्य नहीं। परन्तु शेष तीन हिंसाओं में जीव मारने का लक्ष्य न होकर गृह कार्य, व्यापार, आत्म रक्षा आदि कार्यो का ही मुख्य लक्ष्य है । वह गृहस्थ या श्रावक विचार पूर्वक जीववध करता नहीं है पर उन कार्यो के करते हुए जीववध हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि गृहस्थ नागरिक को धर्म, अर्थ, काम पुरूषार्थ के द्वारा गृहस्थाश्रम लोक व्यवहार राज्य शासन आदि के कार्य निश्चित रूप से करने पड़ते है। अन्यथा जीवन निर्वाह शान्तिपूर्वक नहीं हो सकता है, सब प्रकार की परिस्थितियाँ उसके सामने उपस्थित होती रहती है। इसलिए प्रथम द्वितीय कक्षा में मानव अहिंसा का एक देश पालन करता है। वह अपने पद की अहिंसा का पालन करता हुआ ही शत्रु का सामना करके देश रक्षा, समाज रक्षा, साहित्य रक्षा, मंदिर रक्षा, महिलाओं, के सतीत्व की रक्षा, कुटुम्ब और अपनी रक्षा कर सकता है ।अणुव्रती अहिंसा का धारी श्रावक गृहकार्य, व्यापार आदि तो करता ही है पर आवश्यकता के अनुसार द्वारपाल से लेकर राष्ट्रपति तक राज्य शासन के कार्य भी कर सकता है। श्री जम्बुकुमार जैसे अहिंसक वीर का नाम विश्व में प्रसिद्ध है कि जिसने अल्पवय में ही शस्त्र और शास्त्र विद्या का अभ्यास कर अपने पराक्रम से युद्धकर महाराज श्रेणिक की शत्रु सेना का बहिष्कार कर दिया था। और मगध देश की रक्षा कर अहिंसा का झण्डा फहराया था। माता-पिता द्वारा शिक्षा के लिए पुत्र को दण्ड देना, शिक्षक द्वारा शिष्य को दण्ड देना, निरोगता प्राप्त करने के लिए सूची यन्त्र तथा आपरेशन के प्रयोग अणुव्रती अहिंसा के कर्तव्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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