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________________ कृतित्व / हिन्दी कच्छदेश के राजा की बहिन यशस्वती, (2) महाकच्छदेश के राजा की बहिन सुनंदा, कर्मयुग का यह सबसे प्रथम विवाह संस्कार था जो कि अन्य मानवों के लिए विवाह संस्कार का पथ प्रर्दशक हुआ था । माता - पिता दोनों ऋषभदेव के गृहस्थ जीवन से अति प्रमुदित हुए । समय व्यतीत होने पर यशस्वतीरानी ने चैत्र कृष्णा नवमी के शुभमुहूर्त में वीर पुत्र भरत को जन्म दिया। जो भारतवर्ष (आर्यावर्त) का भरत चक्रवर्ती होगा। कुछ समय पश्चात् ब्राह्मी नाम की एक श्रेष्ठ पुत्री हुई। सुनंदारानी (द्वितीय) ने कुछ समय पश्चात् शुभ वेला में बाहुबलि नाम के सुपुत्र को जन्म दिया, जो बलिष्ठ प्रथम कामदेव का पद धारण करेगा। समय व्यतीत होने पर सुनंदा ने सुंदरी नामक कन्या रत्न को जन्म देकर अपने इक्ष्वाकु वंश कृतार्थ किया। इस प्रकार इस आर्यावर्त के ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर भरत प्रथम चक्रवर्ती और बाहुबलि प्रथम कामदेव सुशोभित हुए। साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ एक समय ऋषभदेव सिंहासन पर विराजमान थे, उसी समय ब्राह्मी और सुन्दरी दोनों पुत्रियों ने आकर विनयपूर्वक पिता जी को प्रणाम किया। दोनों पुत्रियों को गोद में बिठाकर उनके विनय आदि गुणों की प्रशंसा की। उनसे यह भी कहा कि विद्या से मानव जीवन का कल्याण होता है एवं जीवन पवित्र होता है। इसलिए तुम दोनों को विद्या का अभ्यास करना चाहिए। उन दोनों पुत्रियों ने विद्याभ्यास की इच्छा प्रकट की। ऋषभदेव ने श्रुतज्ञान देवता का स्मरण कर ब्राह्मी को ब्राह्मी भाषा और लिपि का अभ्यास कराया व्याकरण साहित्य आदि विषयों का पाठ पढ़ाया। सुन्दरी कन्या को भी "ओं नमः सिद्धेभ्यः " मंत्र का उच्चारण कराते हुए | अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित का अच्छा अभ्यास कराया । कुछ समय पश्चात् वे दोनों कन्यायें अपने - अपने विषय में विदुषी हो गई । ऋषभदेव ने प्रसन्न होकर उन दोनों विद्या प्रवीण कन्या रत्नों को मंगलमय आशीर्वाद प्रदान किया । ऋषभदेव ने अपने पुत्र भरत, बाहुबलि आदि को भी यथायोग्य, राजनीति, नाट्यकला, समाजशास्त्र, विज्ञान, साहित्य आदि कलाशास्त्रों का ज्ञान कराया। साथ ही सम्यक् श्रद्धा, सम्यक्विज्ञान और सम्यक्आचरण रूप आध्यात्मिक विद्या की शिक्षा प्रदान कर कृत्य पूर्ण किया । यह संक्रान्ति का युग था, भोगयुग की समाप्ति होने से कल्पवृक्षों का अभाव हो गया। उनके अभाव से मानवों के लिए जीवन निर्वाह की सामग्री तथा कपड़ा, रोटी और मकान का मिलना कठिन हो गया । निराधार जनसमूह जब भोजन आदि के अभाव से बहुत दुखी होने लगा, तब अपने रक्षक महाराजा नाभिराज के दरवार में जन समूह एकत्रित होकर चिल्लाने लगा - महाराज ! रक्षा करो ! रक्षाकरो ! भूख प्यास सता रही है, खाने पीने को कुछ भी नहीं है रक्षा करो यह दुःखभरी आवाज सुनकर नाभिराजा ने जनसमूह से कहा - तुम्हें दुखी होने की जरूरत नहीं है, तुम शीघ्र ही ऋषभदेव के पास चले जाओं, वे तुम्हारी सब पीड़ा को दूर करने में समर्थ हैं। यह सुनकर जनसमूह ऋषभदेव के महल पर आया और पूर्ववत् चिल्लाने लगा । ऋषभदेव ने जोरदार शब्दों में कहा, दुःखी मत हो ओ । सामने प्राकृतिक उत्पन्न ये गन्ने (इक्षु) के पेड़ लगे हुए हैं, इनको टुकड़े टुकड़े कर इनका रस चूसो, तुम्हारी भूख प्यास दोनों दूर हो जावेगी । जन समूह ने सैकड़ों गन्ने - 146 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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