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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जीवन की महत्वपूर्णता डॉ. क्रांत कुमार सराफ (मंत्री) आदरणीय पंडित जी के विषय में कुछ कहने के लिए शब्दों का चयन मुश्किल होता है। क्योंकि उन सरीखे विशाल व्यक्तित्व के संबंध में कुछ कहने, लिखने में शब्द कम पड़ते है । श्री ग. दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर के प्राचार्य अखिल भारतवर्षीय विद्वत परिषद एवं शास्त्री परिषद के प्रमुख विद्वान, सरल स्वभावी, मृदु भाषी आदरणीय पं डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य श्री दि. जैन समाज के मूर्धन्य विद्वानों में एक प्रमुख स्थान रखते थे। आदरणीय पं. जी ने करीब 55 वर्षों तक इस संस्था की सेवा विद्वान, शिक्षक के रूप में की । प्रात: स्मरणीय इस संस्था के संस्थापक पू. क्षु. गणेशप्रसाद वर्णी जी महाराज की प्ररेणा से आपने पिता की अनुमति से पं. दयाचंद जी अपने बड़े भाई पं. माणिकचंद्र जी न्यायकाव्य तीर्थ के साथ इस संस्था में (पूर्व नाम श्री सत्तर्क सुधा तरंगिणी पाठशाला सागर) अध्ययन करने आये और यही के हो गये । आदरणीय स्व. पं. माणिकचंद्र जी ने और आपने जीवन पर्यन्त इस संस्था की सेवा विद्वान शिक्षक एवं प्राचार्य के रूप में की । जो भी व्यक्ति विद्यार्थी पंडित दयाचंद्र जी के सम्पर्क में आता इनके गुणों का प्रशंसक हो जाता था । आदरणीय पं. डॉ. दयाचंद्र जी साहित्याचार्य ने सन् 1983 से संस्था के प्राचार्य का दायित्व संभाला था । आपके साथ कार्य करने का मुझे बहुत अधिक अवसर प्राप्त हुआ। आपने प्राचार्य के रूप में काफी कुशलतापूर्वक कार्य किया और महाविद्यालय के संचालन में आवश्यकतानुसार मुझसे सहयोग भी लिया। समय - समय पर पंडित जी मुझे कठिनाईयाँ आने पर मार्गदर्शन भी दिया करते थे। ___ इनके परिवार में इनकी बेटियाँ ही हैं जो अपने पिता के बताए धर्म सम्मत मार्ग पर चलकर श्री जिनेन्द्र भगवान की एवं जिनवाणी माता की धर्म प्रभावनापूर्वक सेवा कर रही है। आदरणीय पंडित जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की सुगंध सभी दिशाओं में फैली थी। और इस नगर से धर्मप्रभावनार्थ बाहर शहरों में जब जाते थे साधर्मी बंधु इनकी सादगी व गुणों के प्रशंसक हो जाते थे।12 फरवरी 2006 को श्री 1008 भगवान बाहुबली स्वामी के महा मस्त का अभिषेक कार्यक्रम आदरणीय पंडित जी की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। दोपहर में आपने 91 वर्ष की आयु में अपना शरीर छोड़ दिया और इस अपार धर्म प्रभावना के अवसर पर पूर्ण धर्म निष्ठा के साथ इस संसार से मुक्ति लेना, उन सरीखे विरल व्यक्तित्व के लिए ही संभव हुआ। आदरणीय पंडित जी के आदर्शो पर हम सब चलें, यही कामना जिनेन्द्र प्रभु से है। 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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