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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ हमारे चाचा जी (तर्ज उड़ चला पंछी रे) संझले चाचा चल दिये रे - परिजन को छोड़के। संसार रूपी सागर से - अपनी दृष्टि मोड़के । परिवार सारा देखो - देखता ही रह गया। आया अकेला चेतन - अकेला चला गया। साथी सगा न कोई - जाये चेतन साथ में ॥ संझले चाचा चल दिये भगवानदास भायजी के पंचरतन थे। शाहपुर नगरी के ज्ञान दिवाकर थे ।। ज्ञान को बढ़ाना है कहते आत्म जोर से ॥ संझले चाचा चल दिये। माणिक चंद जी माणिक से चमके श्रुत सागर जी श्रुत में रमके॥ दयाचंद जी ने - दया अपनाई रे ॥ संझले चाचा चल दिये। धरमचंद जी ने - धर्म ध्वज फहराके। अमर चंद जी ने - प्रतिष्ठा कराके ॥ दिखला दिया सब गुणों की है खानरे । संझले चाचा चल दिये ॥ आध्यात्म रस के रसिया - अध्ययन मनन किया। गरुओं से शिक्षा लेके - जीवन सफल किया। वर्णी जी की वाणी के - सच्चे उपासक थे। संझले चाचा चल दिये। साहित्य के आचार्य थे - न्याय की वे मूर्ति थे। छात्रों के अनशासन की अनपम छवि थे। छात्रों को पढ़ाया उनने , अपना बच्चा मानके । संझले चाचा चल दिये। बड़प्पन निभाने से ही बड़े गुरु आप थे। समता से जीवन जीना - सीखे कोई आपसे ॥ गुरु के बचन को सुनकर सभी संतुष्ट रे । संझले चाचा चल दिये । बारह फरवरी का शुभ दिन - बाहुबली अभिषेक था। मोराजी में भक्तजनों का - बड़ा ही समूह था ॥ चाचा जी ने छोड़ा तन को - विशुद्ध परिणाम से ॥संझले चाचा चल दिये | मनो, राजे, शकुन सोमा- जिन धर्म पालना | परिवार वालो सुन लो - धर्म न विसारना॥ बेटी 'किरण' बढ़ना धर्म की मशाल ले । संझले चाचा चल दिये रे - परिजन को छोड़ के। संसार रूपी सागर से - अपनी दृष्टि मोड़ के ॥ श्रीमती चंदा कोठारी केवल चंद कोठारी जबलपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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