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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ श्रद्धा सुमन अपने अथक यत्न के बल पर । की उन्नति बाधाएँ सह शत ॥ बने विरोधी भी अनुयायी। आज तुम्हें पहचान। तुम्हें शत् शत् वंदन मतिमान ॥1॥ संस्था सागर के संरक्षक आत्म तत्व के अनुपम दर्शक । है अगाध पांडित्य तुम्हारा तुम गुरुवर्य महान। तुम्हें शत शत वंदन मतिमान ||2|| तुमने ज्ञान प्रसार किया है। विद्वानों को जन्म दिया है। दूर विवादों कलहों से रह। किया आत्म कल्याण ॥ तुम्हें शत शत वंदन मतिमान ॥3॥ रहा सदा ये ध्येय तुम्हारा बने समाज विवेकी सारा। क्रिया काण्ड और कुरीतियां सब, हो जायें निष्प्राण ॥ तुम्हें शत शत वंदन मतिमान ||4|| जैनागम के वृद्ध पुजारी है सेवाएँ अमूल्य तुम्हारी। कैसे हो सकते हम उऋण, कर किंचित गुणगान ॥ तुम्हें शत शत वंदन मतिमान ॥5॥ फिर भी हम सब होकर प्रमुदित करते श्रद्धांजलि समर्पित । करो इन्हें स्वीकार मनस्वी, हो तुमसे उत्थान ॥ तुम्हें शत शत वंदन मतिमान ।।6।। श्रीमती बसंती जैन (वीरपुर वाले) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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