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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व (ख)जे सिरज्यो ते थाइस्यै, बैस रहै बल छोड़ि।
अधम तिके नर आलसू, खरी लगाड़े खोड़ि ॥ (ग) कुण न करई रिधि गारवउ, नारि सुं कुण न मुज्झ।
विधिनां कुण न खण्डीयो, कुण चूको नहि बुज्झ॥२ (घ) सहू को लोक कहै छै सरज्यु, ते बोल केता वाचुं रे।।
उद्यम छै पणि भावी अधिकुं, समयसुन्दर कहै साचुं रे॥ १.४६ भाग्य और पुरुषार्थ
वखत मांहि लिख्यउ ते लहिस्यइ, निश्चय बात हुयइ हुणहार। एक कहइ काछड़ बांधीनइं, उद्यम कीजइ अनेक प्रकार॥ व्रीखण करमा वाद करतां, इम झगड़उ भागउ पहुतो दरबार।
समयसुन्दर कहइ बेऊ मानऊँ, निश्चय मारग नई व्यवहार ॥ १.४७ भावना
(क) भावना मन बार भावउ, तूटइ करम नी कोड़ि रे।
तप संयम तउ छइ भला, पण नहीं भावना नी जोड़ि रे॥ (ख) तउ पणि अधिकउ भाव छइ, एकाकी समरत्य।
दान सील तप त्रिण भला, पणि भाव विना अकयत्थ ॥ अंजन आँखें आंजतां, अधिकी आणि ए रेख।
रज मांहे तज काढतां, अधिक भाव विशेष ॥६ १.४८ मनःशुद्धि
कोलो करावउ मुंड मुंडावउ, जटा धरउ को नगन रहउ। को तप्प तपउ पंचागनि साधउ, कासी करवट कष्ट सहउ॥ को भिक्षा मांगउ भस्म लगावउ, मौन रहउ भावइ कृष्ण कहउ। समयसुन्दर कहइ मनसुद्धि पाखइ, मुगति सुख किमही न लहउ॥
१. चम्पकवेष्ठि-चौपाई (१.६, दूहा ३) २. सीताराम-चौपाई (६.१.१९) ३. चम्पकवेष्ठि-चौपाई (१.१३-२५) ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (२९) ५. वही, बारह भावना गीतम् (१) ६. वही, दानशीलतपभाव संवाद-शतक (ढाल ५ से पूर्व, दूहा ६-७) ७. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (१६)
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