SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३५ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व १.४१ पुण्य पुण्य तणा फल परतिख देखो, करो पुण्य सहू कोय जी। पुण्य करतां पाप पुलावे, जीव सुखी जग होय जी॥ १.४२ पुण्य-कृत्य अभयदान सुपात्र अनोपम, वलि अनुकम्पा दान जी। साधु श्रावक धर्म तीरथ यात्रा, शील धर्म तप ध्यान जी॥ सामायिक पोषह पडिकमणो, देव पूजा गुरु सेव जी। पुण्य तणा ए भेद परूप्या, अरिहंत वीतराग देव जी॥२ १.४३ प्रीति (क) जे जेहनइ मन मांहि वस्या रे, ते तउ दूरि थकां पणि पास रे। किहां कुमुदिनी किहां चन्द्रमा रे, पणि दूरि थी करइ परकास रे॥ (ख) पर दुक्ख जाणइ नहीं पापिया रे, दुसमण घालइ विचइ घात रे। जीव लागउ जेहनउ जेहस्युं रे, किम सरइ कीधां विण वात रे॥ (ग) प्रीतड़िया न कीजइ हो नारि परदेशियां रे, खिण-खिण दाझइ देह। वीछड़िया वाल्हेसर मलवो दोहिलउ रे, सालइ अधिक सनेह ॥ १.४४ बुद्धि बुद्धिमतो मनुष्यस्य बुद्धः तदेव फलं। यत् पुण्यपापादौ तत्त्वविचारणा क्रियते ॥ १.४५ भवितव्यता (क) उद्यम भाग्य विना न फलइ। बहुत-उपाय किये क्या होई, भवितव्यता न टलइ॥ पूरब रवि दिस ऊगत, अविचल मेरु चलइ। तउ पण लिखित मिटइ नहीं कबही उद्यम क्या एकलइ॥ १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पुण्य छत्तीसी (१) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पुण्य छत्तीसी (२-५) ३. वही, श्री रामसीता गीतम् (३) ४. वही, श्री स्थूलिभद्र गीतम् (३) ५. वही, स्थूलिभद्र गीतम् (१) ६. कालिकाचार्य कथा पृष्ठ २०० ७. समयसुन्दर कृति सुकुमांजलि, उद्यम-भाग्य गीतम् (१-२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy