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________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व १.४९ महापाप बालक, वृद्ध नइ रोगियउ साध बांभण, नइ गाइ । अबला एह न मारिवां, मार्यां महापाप थाइ ॥ १ १.५० मानवजन्म की दुर्लभता १.५१ माया १.५२ मुक्ति-फल १.५३ म्रियमाण १.५४ मृत्यु (क) माया कारण देश देसांतर, अटवी वन मां जावै रे । प्रवहण बइसी धीर द्विपांतर, सायर मां झपावै रे ॥ माया मेली करी बहु भेली, लोभे लक्षण जाय रे । भीतें धन धरती में घाले, ऊपर विषहर थाय रे 11 जोगी जंगम तपसी सन्यासी, गगन थइ परवरीया रे । ऊंधे मस्तक अगन धखंती, माया थी न ओसरीया रे ॥३ (ख) जनम थी माया मेलवे रे, सीखइ घर नो सूत्र । ढलडीए रमती कहे रे, ए मुझ पति ए पुत्र ॥ " मानुषी भव लही दुर्लभ, पापे पिंड म भार रे । आल काग उडावणै कुं, मूढ़ रत्न म हार रे ॥२ Jain Education International पानड़ा प्रत्यक्ष प्रभुता, फूटरा सुख फुल र । रे मुक्ति ना फल घणा मीठा, आपइ ए अमूल रे ॥ याता म्रियमाणश्च न केनापि रोद्धुं शक्यते । मरण सहु नइ सारखउ रे, कुण राजा कुण रांक । पणि जायइ जीव निसंबलउरे, एहिज मोट बांक ॥ १. सीताराम - चौपाई (३.७.१३) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, आत्मप्रमोद गीतम् (२) ३. वही, मायानिवारण सज्झाय (२-४) ४. चार प्रत्येकबुद्ध - चौपाई (२.३.३) ५. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, नव वाड़ शील गीतम् (१२) ६. कालिकाचार्य - कथा, पृष्ठ २०१ ७. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, जीव- प्रतिबोध गीतम् (५) For Private & Personal Use Only ४३७ www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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