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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व कवि के इन दोनों शिक्षा-गुरुओं का संक्षिप्त उल्लेख कर देना यहाँ अप्रासंगिक नहीं है। ११.१ महिमराज- आप मेघावी और प्रतिभासम्पन्न थे एवं सदा अध्ययन, मनन, चिंतन में अपना समय सार्थक करते थे। आपका जन्म वि० सं० १६१५ में हुआ था। आपका जन्म-नाम मानसिंह था। आपके पिता का नाम शाह चांपसी चौपड़ा और माता का नाम चाम्पल देवी था, जो खेतासर ग्राम में निवास करते थे। आपने कवि के प्रगुरु आचार्य जिनचन्द्रसूरि से वि० सं० १६२३ में आठ वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की थी। दीक्षावस्था का आपका नाम महिमराज रखा गया था। असाधारण प्रतिभाशाली विद्वान होने के कारण जिनचन्द्रसूरि ने आपको वि.स. १६४० में 'वाचक' पद प्रदान किया था। सम्राट अकबर आपसे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने ही जिनचन्द्रसूरि से निवेदन कर बड़े उत्सव के साथ आपको वि० सं० १६४९ में आचार्य-पद प्रदान करवा कर जिनसिंहसूरि नाम रखवाया। कवि समयसुन्दर ने 'जिनसिंहसूरि-पदोत्सव-काव्यम्' में इस सम्बन्ध में सविस्तार वर्णन किया है। सम्राट जहांगीर ने अपने पिता का अनुकरण कर आपको 'युगप्रधान' का पद प्रदान किया था। आपकी कविवर समयसुन्दर पर इतनी अधिक महती कृपा रही और कवि की भी आपके प्रति इतनी अधिक आस्था थी कि कवि ने आपके ऊपर तैंतीस रचनाएँ रची थीं। आपके जिनराजसूरि एवं जिनसागरसूरि आदि विद्वान सुशिष्य थे। वि० सं० १६७४ में आपकी मृत्यु हुई। ११.२ समयराज - आपके जीवन-वृत्त के सन्दर्भ में कोई विस्तृत विवरण प्राप्त नहीं होता है। आप उपाध्याय-पद से विभूषित थे। आपने और वाचक महिमराज ने समयसुन्दर को महान् श्रुतज्ञानी बनाया। फलस्वरूप कवि ने आप दोनों शिक्षागुरुओं के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा प्रकट की है। आपकी धर्ममंजरी-चतुष्पदी, पर्युषण-व्याख्यान-पद्धति, जिनकुशलसूरि प्रणीत शत्रुञ्जय-ऋषभजिन-स्तव-अवचूरि, साधु-समाचारी आदि कृतियाँ प्राप्त हैं। समयसुन्दर ने इन दोनों के समीप किन-किन ग्रन्थों का अभ्यास किया, इसकी सूचना प्राप्त नहीं होती है। फिर भी महोपाध्याय विनयसागर का अनुमान है कि कवि की जिस प्रतिभा का परिचय हमें 'अष्टलक्षी' में प्राप्त होता है, उससे यह प्रमाणित होता है कि आपने वाचकों से सिद्धहेमशब्दानुशासन, अनेकार्थ-संग्रह, विश्वशंभुनाममाला, काव्यप्रकाश, पंचमहाकाव्य आदि ग्रंथों के साथ-साथ जैन आगमिक साहित्य का और जैन-दर्शन का विशेषतया अध्ययन किया था। १. द्रष्टव्य – राजसमुद्र कृत जिनसिंहसूरि-गीतम्। २. द्रष्टव्य - समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृ० ३७८-४०३ ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुन्दर, पृ० १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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