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________________ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त २५ एक क्रान्ति की थी और जिसमें अनेक प्रभावशाली आचार्य और अनेक प्रतिभाशाली विद्वान् मुनिजन हुए, जिन्होंने अपनी सामाजिक सेवाओं और कृतियों से खरतरगच्छ का नाम गौरवान्वित किया है तथा जन-जन की श्रद्धा के केन्द्र बने हैं । खरतरगच्छ की विद्वत् परम्परा में भाषा, साहित्य, दर्शन, इतिहास, ज्योतिष, वैद्यक आदि विविध विधाओं पर हजारों कृतियों की रचना हुई। आज भी इनकी कृतियों से जैन-भंडार भरे पड़े हैं। इनकी यह विद्योपासना न केवल जैनधर्म की दृष्टि से अपितु समग्र भारतीय संस्कृति एवं साहित्य की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है । स्पष्ट है कि समयसुन्दर की गुरु परम्परा में जिनेश्वरसूरि, अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनपतिसूरि, जिनभद्रसूरि आदि अनेक प्रभावशाली युगप्रधान एवं विद्वान् आचार्य हुए हैं। हमारे विवेच्य कवि भी इस विद्वत्-परम्परा की श्रृंखला की एक कड़ी हैं। ११. शिक्षा और शिक्षा गुरु कविवर्य समयसुन्दर के जीवनवृत्त के परिप्रेक्ष्य में उनकी स्वरचित कृतियों और पश्चवर्ती मुनियों की कृतियों के आधार पर अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं । प्रव्रज्या ग्रहण करने से पूर्व कवि ने कुछ विद्याध्ययन किया या नहीं, इस विषय में कोई निश्चित निर्देश नहीं मिलता है। मारवाड़, उसमें भी सांचौर जैसे पिछड़े हुए गाँव में ज्ञानाभ्यास के लिए कवि को अधिक अनुकूलता प्राप्त हुई हो, यह संभव नहीं है; परन्तु इनके द्वारा रचित साहित्य की नामावली-मात्र देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन्होंने कितना अधिक अध्ययन किया था । कवि की 'अष्टलक्षी' नामक केवल एक कृति ही इनकी प्रखर विद्वत्ता की प्रतिनिधित्व करती है। इसमें यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि दीक्षा के बाद ही इन्हें प्रौढ़ शिक्षा प्राप्त हुई होगी। कवि के गुरु सकलचन्द्र का निधन कवि की दीक्षा के कुछ ही वर्षों के पश्चात् हो गया था । अत: इनको गुरु के द्वारा अधिक शिक्षा नहीं मिल पाई थी । कवि के स्वयं के उल्लेखानुसार इनका विद्याध्ययन वाचक महिमराज और उपाध्याय समयराज के सान्निध्य में हुआ था । कवि ने इस तथ्य का अङ्कन इस प्रकार किया है. श्री महिमराज वाचक-वाचकवर समयराज पुण्यानां, द्विकगुरुणां प्रसादतो सूत्रशतकमिदम् । १ X X श्री जिनसिंह मुनीश्वर वाचकवर समयराज-गणिराजाम्, म विद्यैक गुरुणामनुग्रहो मेऽत्र विज्ञेयः ॥ २ १. भावशतक (१.१) २. अनेकार्थरत्न मंजूषा, अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति २८ Jain Education International X For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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