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________________ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त १२. पदारोहण १२.१ गणिपद - कविप्रवर समयसुन्दर की सर्वप्रथम कृति है, 'भावशतक' । यह कृति कवि की प्रबुद्धता का परिचय कराती है । कवि ने इस कृति के अन्त में अपने नाम के साथ 'गणि' पदावतंश शब्द का प्रयोग भी किया है। इस कृति का निर्माण वि० सं० १६४१ में समाप्त हुआ ।' कवि को 'गणि' पद कब प्राप्त हुआ, इसका संकेत अन्य कहीं उपलब्ध न होने से यह ग्रन्थ ही इस तथ्य को प्रमाणित करने का मूलाधार है । कवि की दीक्षा यदि वि० सं० १६२८-३० में हुई मान्य करते हैं, तो गणिपद दीक्षा के ८-१० वर्ष पश्चात् स्वीकार कर सकते हैं। कवि को जिनचन्द्रसूरि ने आगमिक प्रशिक्षण, उच्च अभ्यास, तीक्ष्णबुद्धि, मेधावी प्रतिभा तथा तप-संयम के पालन में दक्ष देखकर गणिपद प्रदान किया होगा। अनुमानतः समयसुन्दर के शिक्षागुरु वाचक महिमराज के साथ ही इन्हें भी जिनचन्द्रसूरि ने वि० सं० १६४०, माघ शुक्ल पंचमी को जैसलमेर में 'गणि' की उपाधि से विभूषित किया होगा । १२. २. वाचकपद - 'कर्मचन्द्रवंश - प्रबंध '३ एवं 'चौपाई ४ के अनुसार समयसुन्दर को 'वाचनाचार्य' अथवा वाचक- पद प्राप्त हुआ था। वाचक- पद संप्राप्त होने के पश्चात् कवि की लिखित शाम्बप्रद्युम्न चौपाई, चार प्रत्येक चौपाई, मृगावती - चरित्र - चौपाई इत्यादि कृतियों में स्वयं को 'वाचक समयसुन्दर' के रूप में ही प्रस्तुत किया है । राजसोम कृत 'समयसुन्दर गीतम्' के अनुसार यह निश्चित है कि कवि के प्रगुरु ने ही आपको 'वाचक पद' प्रदान कर सम्मानित किया था ।" कवि के शिक्षागुरु वाचक हमराज को लाहौर में ' आचार्य पदवी' प्रदान करते समय ही कवि को 'वाचक पद' की उद्घोषणा हुई थी । यह पदोत्सव कार्यक्रम वि० सं० १६४९, फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को सम्पन्न हुआ था। कवि ने इस समय तक रास, गीत, प्रबन्ध, स्तवन, छत्तीसी आदि काव्य विविध अङ्गों पर साहित्य लिखना प्रारम्भ कर दिया था। १. तच्छिष्य समयसुन्दरगणिना स्वाभ्यास वृद्धिकृते । २. शशिसागररस - भूतल संवति विहितं च भावशतकमिदम् । ३. तेषु च गणि जयसोमा, रत्ननिधानाश्च पाठका विहिता । गुणविनय समयसुन्दर गणि कृतौ वाचनाचार्यौ ॥ - कर्मचन्द्रवंश - प्रबन्ध (६२) ― भावशतक (९९) ४. वाचक पद गुणविनय नइ, समयसुन्दर नइ दीधउ रे । युगप्रधान जी नइ करइ, जाणि रसायण सीधउ रे ॥ - Jain Education International - (ख) राजसोम कृत समयसुन्दर जी गीतम्, पृष्ठ १३३ ६. कवि समयसुन्दर कृति जिनसिंहसूरि पदोत्सव - काव्यम् जैन - रास-संग्रह, भाग-३, चौपाई ५. (क) युगप्रधान जिनचन्द्र स्वयंहस्त वाचक हो पद लाहोरे दियो । २७ भावशतक (१००) - - समयसुन्दर कृत नलदवदन्ती - रास, परिशिष्ट ई, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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