SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १०.२४ गणिसकलचन्द्र - आप जिनचन्द्रसूरि के आद्य शिष्य हैं और हमारे कवि के गुरु हैं। आपके जन्म एवं माता-पिता के सन्दर्भ में कोई भी ऐतिहासिक प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं होता है। केवल इतना संकेत मात्र मिलता है कि आप रीहड़ गोत्रीय थे। समयसुन्दर ने कल्पसूत्र की कल्पलता नामक टीका की प्रशस्ति में 'गणिसकल चन्द्राख्यो, रीहडान्वयभूषणम्' उल्लेख कर उन्हें रीहड़ गोत्रीय ही माना है। समाचारी शतक में भी उक्त बात की पुष्टि मिलती है। खरतरगच्छ-पट्टावली के अनुसार इनकी दीक्षा विक्रम सं० १६१२ में बीकानेर में हुई थी। इसी आधार पर यह अनुमान भी लगाया जाता है कि आप बीकानेर के निवासी थे। आपका स्वर्गवास नाल, बीकानेर में ही हुआ होगा, क्योंकि वहाँ पर आपके ही परिजनों, रीहड़-गोत्रियों के द्वारा आपकी चरण-पादुका का निर्माण हुआ है। सं० १६२८ के सांभली-वाले पत्र में आपके नाम का उल्लेख प्राप्त होता है और आपकी चरण-पादुका की प्रतिष्ठा आचार्य जिनचन्द्रसूरि के द्वारा वि० सं० १६४९ में कराई गई। अत: इसी के बीच आपका स्वर्गवास हुआ होगा।२ । सकलचन्द्र गणि के नाम से जिनवल्लभसूरि कृत 'धर्मशिक्षा' पर वृत्ति तथा प्राकृत में रचित 'हिताचरण' नामक एक अन्य ग्रंथ पर वृत्ति प्राप्त होती है। यद्यपि यह दोनों कृतियाँ गणि सकलचन्द्र की कही गई हैं, तथापि ये गणि सकलचन्द्र कौन से हैं, यह विवादास्पद है। उसी काल में तपागच्छ में विजयदानसूरि के शिष्य और महोपाध्याय भानुचन्द्र के दीक्षागुरु एक अन्य गणि सकलचन्द्र भी थे। कवि ने अपनी गुरु-वंश-परम्परा का जो विस्तृत विवरण अपनी कति "खरतरगच्छ-पट्टावली' एवं 'अष्टलक्षी' की प्रशस्ति में दिया है, उसके आधार पर हमने उपर्युक्त विवेचन प्रस्तुत किया है। कवि ने इसके अतिरिक्त हिन्दी भाषा में भी गुर्वावलियों की रचना की है, जिनमें मुख्यत: आचार्य गणनायकों का नाम उल्लेखमात्र ही मिलता है। फिर भी इन प्रमाणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कवि अपनी गुरुवंश-परम्परा से पूर्णतया अवगत थे और उसका सादर स्मरण करते थे। इस गुरुवंश-परम्परा से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि यह गुरु-वंश जैनधर्म की श्वेताम्बर-शाखा के खरतरगच्छ से सम्बन्धित है। खरतरगच्छ वह परम्परा है, जिसने चैत्यवास और मुनि-जीवन के शिथिलाचार के विरुद्ध १. द्रष्टव्य - समाचारी-शतक, प्रारम्भ ९ २. तच्चारुचरणाम्भोज-चंचरीक मना सना। गणिः सकलचन्द्राख्यो, विख्यातो मुख्य शैक्षकः॥ __ - अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति, २३-२४ ३. द्रष्टव्य - समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुन्दर, पृष्ठ १२-१३ ४. द्रष्टव्य- समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, खरतर-गुरु-पट्टावली और गुर्वावली गीतम्, पृष्ठ ३४७-३४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy