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________________ २३ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त असीम प्यार प्राप्त किया था। आप गुरु जिनहंससूरि के तत्त्वावधान में दीक्षित हुए। आपकी कृतियों में 'कुर्मापुत्र-रास' नामक कृति मिलती है। आपके प्रबुद्ध शिष्य कवि कनक ने 'मेघकुमार रास' आदि की रचना की है। १०.२३ जिनचन्द्रसूरि- आप कवि के प्रगुरु हैं। आपका जन्म सं० १५९५ में ओसियां (मारवाड़) के निकट खेतसर नामक गांव में ओसवाल-वंश के रीहड़ गोत्र में हुआ। आपके पिता का नाम श्रीवंत तथा माता का नाम श्रीयादे (श्रीयादेवी) था। आपकी दीक्षा सं० १६०४ में और आचार्य-पदारोहण सं० १६१२ में सम्पन्न हुआ। आप सम्राट अकबर प्रतिबोधक के रूप में जैन समाज में बहुविश्रुत हैं। अकबर आपसे इतना अधिक प्रभावित था कि उसने आपको वि० सं० १६४९ में 'युगप्रधान' पद प्रदान किया था। आपके सदुपदेश से अकबर ने अहिंसा-प्रचार तथा तीर्थ-रक्षा के लिए कई फर्मान (आधिकारिक राजकीय आदेश) निकाले। नरेश जहांगीर भी आपको अपना गुरु मानता था। समयसुन्दर ने भी आप पर तेरह रचनाएँ लिखी हैं। वि० सं० १६१४ में स्वगच्छ में प्रचलित शिथिलाचार को दूर करने के लिए आपने बीकानेर में क्रियोद्धार किया। इस प्रक्रिया में २८४ शिथिलाचारी साधुओं को गच्छ से अलग किया गया। श्री जिनचन्द्रसूरि के महामन्त्री कर्मचन्द्र बच्छावत और संघपति श्री सोमजी शिवा आदि प्रमुख भक्त और उपासक थे। आपने पीचा आदि १८ गोत्रों की स्थाना की। साहित्-निर्माण में आपकी जिनवल्लभसूरि कृत 'पौषध-विधि-प्रकरण' पर ३५५४ श्लोकपरिमाण की विशद् टीका अत्यन्त गम्भीर और महत्त्वपूर्ण है। आपके द्वारा लिखित ग्रन्थों में द्रौपदी, बारह भावना-अधिकार, शीलवती, शांबप्रद्युम्न-चौपाई, बारव्रत नौ रास आदि ग्रन्थ भी मिलते हैं। सं० १६७० में जोधपुर जनपद के बिलाड़ा नगर में आपका देहविलय हुआ था। १. वही, पत्र ६. २. द्रष्टव्य - (क) मंत्री कर्मचन्द्रप्रबन्ध वृत्ति, (ख) जयसोम कृत् प्रश्रोत्तर-ग्रन्थ, (ग) श्रीवल्लभोपाध्याय कृत् अभिधान-चिन्तामणि-नाममाला-टीका ३. (क) सरस्वती, पत्रिका, अंक ६, जून १९१२ (ख) मूल प्रतिलिपि - खरतरगच्छ-ज्ञान-भंडार, लखनऊ। ४. द्रष्टव्य - समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ३५७ से ३७७ ५. (क) तदीयपद - पूर्वाद्रि - प्रकाशनर विप्र भा: श्री जिनचन्द्रसूरीन्द्रा, जयन्ति जयिनो धना॥ येभ्यो मुद्रा दायियुगप्रधान-पदं प्रभु श्रीमदकब्बरेण । प्रभूतभाग्योदयसुप्रसिद्धा, जयन्तु ते श्रीजिनचन्द्रसूरयः॥ - अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति २२ (ख) खरतरगच्छ-पट्टावली, पत्र ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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