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________________ २२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ग्रन्थ भण्डार कायम किये। आपने जैसलमेर, खंभात, नागौर, कर्णावती, पाटण, मांडवगढ़, जालौर आदि अनेक स्थानों पर ज्ञान-भण्डारों की स्थापना की। जैसलमेर दुर्ग के जैन मंदिर में स्थित जिनभद्रसूरि-ज्ञान-भंडार' आज भी देश-विदेश के विद्वानों का आकर्षण केन्द्र है। यहाँ हजारों हस्तलिखित पाण्डुलिपियों और ताड़पत्रीय प्राचीन ग्रन्थों का विराट संग्रह है। जिनसत्तरी प्रकरण आदि कई ग्रन्थों के आप निर्माता भी हैं। १०.१९ जिनचन्द्रसूरि- आपका जन्म वि० सं० १४८७ में हुआ था। आपके पिता चम्म गोत्रीय साह वच्छराज थे और माता वाल्हादेवी थीं। सं० १४९२ में आप प्रव्रजित हुए। आपका जन्म-नामकरण और दीक्षा-नाम कनकध्वज था। संवत् १५१५ में आपको आचार्यपद प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् जिनचन्द्रसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। सं० १५३० में आपका निधन हुआ। १०.२० जिनसमुद्रसूरि- आप उच्च कोटि के साधक और उद्भट विद्वान् थे। ये बाड़मेर के देकासाह पारख के पुत्र थे। आपने माता देवलदेवी का मृदु प्यार पाया था। सं० १५०६ में जन्म, सं० १५२१ में प्रव्रज्या, सं० १५३३ में आचार्य-पद और सं० १५३६ में आपका समाधि-मरण हुआ। १०.२१ जिनहंससूरि - आपका जन्मस्थान सेत्रावा नामक नगर है। सं० १५२४ में आपका जन्म हुआ था। श्री मेघराज चौपड़ा इनके पिता और कमलादेवी माता थीं। आपका जन्मनाम धनराज था। वि० सं० १५३५ में प्रव्रजित होने पर यही धनराज नाम धर्मरंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आचार्य-पद प्राप्त होने पर आप जिनहंससूरि के नाम से अभिहित हुए। आपने अनेक जिनमंदिरों में प्रतिष्ठाएँ करवाईं और अनेक भव्य व्यक्तियों को दीक्षाएँ प्रदान की। आपका लिखित साहित्य आज अनुपलब्ध है। सं० १५८२ में आप स्वर्गस्थ हुए। १०.२२ जिनमाणिक्यसूरि- आपका जन्म सं० १५४९, दीक्षा सं० १५६०,आचार्य-पद सं० १५८२ और तन-त्याग सं० १६१२ में हुआ। आपका सांसारिक नाम सारंग था। आपने माता रयणादेवी की मृदु कोड़ा में क्रीड़ा की और पिता राउल देव चौपड़ा का १. मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति ग्रंथ, पृष्ठ ३९ २. (क) श्री मजेसलमेरुदुर्ग-नगरे 'जावाल' पुर्यां तथा। श्री मद् ‘देवगिरौ' तथा 'अहि' पुरे श्रीपत्तने' पत्तने ॥ भाण्डागारमबीभरद् वरतरैर्नानाविधैः पुस्तकैः। स श्री मज्जिनभद्रसूरि-सुगुरुर्भाग्याद्भुतोऽभूद् भुवि॥ -- अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति, २१ (ख) खरतरगच्छ पट्टावली, पत्र ६ ३. खरतरगच्छ-पट्टावली पत्र ६ ४. खरतरगच्छ-पट्टावली, पत्र ६ ५. वही, पत्र ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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