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________________ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त २१ से कम आठ वर्ष की आयु में ही संयम ग्रहण किया जा सकता है 1 ) दीक्षा के बाद यही पातालकुमार, यशोभद्र के नाम से विख्यात हुए । वि० सं० १४०६ में आचार्य की पदवी प्राप्त होने पर इन्हें जिनचन्द्रसूरि के नाम से अभिषिक्त किया गया। संवत् १४१४ में आप कालधर्म को प्राप्त हुए। १०.१६ जिनोदयसूरि - आपका जन्म विक्रम संवत् १३७५ में पाल्हणपुर निवासी माल्हू गोत्रीय साह रुद्रपाल की धर्मपत्नी धारलदेवी की रत्नकुक्षि से हुआ था। आपका जन्मनाम समर था । वि० सं० १३८९ में आपने और आपकी बहिन कील्हू, दोनों ने साथ-साथ दीक्षा व्रत स्वीकार किया । जिनकुशलसूरि ने दीक्षा देकर आपका सोमप्रभ नाम रखा । संवत् १४१५ में खंभात में आप खरतरगच्छ के आचार्य बने और संवत् १४३२ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी रचनाओं में वि० सं० १४१५ में निर्मित 'त्रिविक्रम - रास ' उपलब्ध है ।३ आज १०.१७ जिनराजसूरि - विक्रम संवत् १४३३ में अणहिलपुर में इन्हें आचार्य पद प्रदान कर जिनोदयसूरि का पट्टधर घोषित किया गया। आप सवा लाख श्लोक के प्रमाण के न्यायग्रन्थों के अध्येता थे । संवत् १४६१ में देलवाड़ा में आपका देहावसान हुआ। १०.१८ जिनभद्रसूरि - आपका जन्म संवत् १४४९, दीक्षा सं० १४६१, आचार्यपद सं० १४७५ और देहोत्सर्ग सं० १५१४ में हुआ। आप अखिल भारत में एक महान् साहित्यसंरक्षक के रूप में स्मरण किये जाते हैं। सं० १४७५ से १५१५ तक के ४० वर्षों में हजारों, बल्कि लाखों ग्रन्थ लिखवाये और उन्हें भिन्न-भिन्न स्थानों में रखकर अनेक नये -नूतन १. द्रष्टव्य प्रवचनसारोद्धार, द्वार १०७, गाथा ७९१ २. (क) तदनु विगतच ( त ? ) न्द्रा : पश्चिमाम्भोधिमन्द्राः, कुशलकुमुदचन्द्राः प्रत्तभव्यांगिभद्राः । प्रणमदमरचन्द्रा निर्जितश्लोकचन्द्राः, इह भुवि जिनचन्द्राः सूरिराजीसुरेन्द्राः ॥ (ख) खरतरगच्छ - पट्टावली, पत्र ५ ३. (क) यद्दीक्षिताः समभवन् पदिनः सुशिष्याः, श्राद्धाश्च सङ्घपतयोऽर्पितवासयोगात् । प्राप्तोदय: प्रवरलब्धि समृद्धिसिद्धेः, पात्रं ततोऽजनि जिनोदयसूरिराजः ॥ खरतरगच्छ - पट्टावली, पत्र ६ ४. (क) रेजिरे राजराजास्या, राजराजिनमस्कृताः । ख श्री जिनराजसूरीन्द्रा, भव्यराजीव भास्कराः ॥ खरतरगच्छ - पट्टावली, पत्र ६ (ख) Jain Education International For Private & Personal Use Only - अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति, १८ - अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति, १९ - अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति, ३० www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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