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________________ २० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व संस्कृत में नौ ग्रन्थ और उपलब्ध होते हैं । आपके शिष्य विनयप्रभ उपाध्याय ने 'श्री गौतम स्वामी नो रास' रचना में भाषा-साहित्य के अन्तर्गत सर्वप्रथम प्रकृति का अत्यन्त मनोहर चित्रण किया है। सं० १३८९ देरावर (सिन्ध) में आपने देह विसर्जन किया। आप हमारे विवेच्य कवि के इष्ट थे । कवि ने आप पर अनेक गीत लिखे हैं । इनमें ग्यारह गीत प्रकाशित रूप में उपलब्ध हैं। १०.१३ जिनपद्मसूरि - आपका जन्म सं० १३८२ में हुआ था। आप लक्ष्मीधर के पुत्र थे और नीकीका के नन्दन थे। आपकी माता ने भी संयम अंगीकार किया था। आपको 'कुर्चालसरस्वति' का विरुद प्राप्त था । वि० सं० १३९० में आपको आचार्य - पद प्राप्त हुआ । सं० १४०० में कपटपूर्वक आपकी हत्या कर दी गई। आपका ग्रन्थ श्री स्थलिभद्र फाग (सिरिथुलिभद्द फागु) प्राचीन होने के कारण वर्त्तमान काव्यसंग्रहों में गौरवपूर्ण स्थान को प्राप्त है । ३ १०.१४ जिनलब्धिसूरि - आपका जन्म विक्रम संवत् १३७८ में मालू गोत्र में हुआ था। सं० १३८८ में पाटण में आपने प्रव्रज्या ग्रहण की थी । संवत् १४०० में आपका आचार्यपदाभिषेक सम्पन्न हुआ था और स्वर्गगमन सं० १४०६ में हुआ था । १०.१५ जिनचन्द्रसूरि - मरुदेश के कुसुमाण ग्राम में मंत्री केल्हा छाजहड़ निवास करते थे । उनकी पत्नी सरस्वती से सं० १३८५ में आपका जन्म हुआ था। आपका जन्म - नाम पाताल कुमार था । आपने सं० १३९० में भगवती जैन दीक्षा ग्रहण की थी। (यद्यपि ५ वर्ष की अल्पायु में दीक्षा प्रदान करने का निर्देश आगमों में अनुपलब्ध है । आगमानुसार कम I १. ( क ) यस्यादेशात् 'खरतर' वसत्यात्ख्यचैत्यं प्रचक्रे । तेजः पालो विपुलविभवोऽपि स्वयं तत्र चैत्ये ॥ यः प्रतिष्ठित् त्रिभुवनगुरो : शान्तिनाथस्य बिंबं । सोऽभूच्छ्रीमज्जिनकुशलराट् सूरिराजीतुराषाट् ॥ (ख) खरतरगच्छ - पट्टावली, पत्र ५ - २. द्रष्टव्य - समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ३४९ - ३५६ ३. (क) नम्नानेकविवेकसेक-विलसत्क्षमापालजम्बालज (ख) खरतरगच्छ - पट्टावली, पत्र ५ ४. (क) (ख) प्रत्यग्रपतिबोधबन्धुररवि: प्रत्यर्थिभूभृत्पविः । य: 'कुर्चालसरस्वती' ति सुतरां ख्यातिं क्षितौ प्राप्तवान्, स श्रीमज्जिनपद्मसूरिगुरुर्जास्ततस्तारकः ॥ तच्चारुचरणनीरज- चंचुरतरचंचरीककरणिरभूत् । स श्रीमज्जिनलब्धि: सूरि : सौभाग्य गुण लब्धिः ॥ खरतरगच्छ - पट्टावली, पत्र ५ - अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति, १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only - अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति, १६ - अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति, १७ www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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