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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त वृहद् वृत्ति', 'पंचलिंगी-प्रकरण-टीका', 'प्रबोधोदय-वादस्थल', खरतरगच्छ समाचारी', 'तीर्थमाला' आदि के अतिरिक्त कतिपय स्तुति-स्तोत्रादि भी पाये जाते हैं। १०.९ जिनेश्वरसूरि-आप श्री नेमिचन्द भंडारी के पुत्र थे। आपका दीक्षा नाम वीरप्रभ रखा गया। वि० सं० १२७७ में जालौर में आपको आचार्य-उपाधि दी गई। तत्पश्चात् जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) के नाम से आपने ख्याति प्राप्त की। संवत् १३३१ में आपका अनशन-पूर्वक समाधि निधन हुआ।२।। १०.१० जिनप्रबोधसूरि- आप शाह श्रीचन्द की भार्या सिरियादेवी के पुत्र थे। संवत् १२८५ में आपने जन्म ग्रहण किया। आपका जन्म-नाम पर्वत था। सं० १२९६ में आप श्रमणधर्म में दीक्षित हुए। आपका नवीन नामकरण प्रबोधमूर्ति हुआ। सं० १३३१ में आपको आचार्य की उपाधि प्रदान की गई। तत्पश्चात् वे जिनप्रबोधसूरि के नाम से अभिहित हुए। श्री पंजिका-प्रबोध, वृत्त-प्रबोध, बौद्धाधिकार-विवरण आदि आपकी कृतियाँ हैं, किन्तु आज वे अप्राप्य हैं। १०.११ जिनचन्द्रसूरि- आप जन्म वि० सं० १३२६ में समियाणा (सिवाणा) नगर में हुआ था। आपके पिता का नाम मन्त्री देवराज छाजहड़ तथा माता का नाम कमलादेवी था। आपका मूल जन्म-नाम खंभराय था। आने वि० सं० १३३२ में जालोर नगर में प्रव्रज्या-व्रत अङ्गीकार किया और वि० सं० १३४१ में जालोर में ही आप आचार्य-पद से सुशोभित हुए। आपने चार राजाओं को प्रतिबोध दिया, अनेक शास्त्रार्थों में विजय प्राप्त की एवं 'कलिकाल-केवली' विरुद से ख्याति अर्जित की। इस तरह जिनशासन की उन्नति करते हुए आपने वि० सं० १३७६ में कालधर्म को प्राप्त किया। १०.१२ जिनकुशलसूरि-आपका जन्म मारवाड़ के बाड़मेर जनपद के सिवाना तहसील में वि० सं० १३३७ में हुआ। आपके पिता जेसलजी छाजेड़ थे और माता जयतश्री थीं। वि० सं० १३४७ में आपने जिनचन्द्रसूरि के पास प्रव्रज्या ग्रहण की, जो संसार-पक्ष में आपके चाचा थे। आपका दीक्षा-नाम कुशलकीर्ति रखा गया। सं० १३७७ में आपको आचार्य-पद प्रदान किया गया। बाद में यही कुशलकीर्ति, जिनकुशलसूरि के नाम से विख्यात हुए। आपने पचास हजार नये जैन बनाकर अपनी गुरु-परम्परा के मिशन को अक्षुण रखा। जिनदत्तसूरि कृत 'चैत्यवन्दन- कुलक' नाम २७ गाथा की लघु रचना पर चार हजार श्लोक परिमित टीका रचकर आपने अपनी अप्रतिम प्रतिभा का परिचय दिया। विद्या-विनोद, कविता-विनोद, भाषा-विनोद आदि ग्रन्थों के अतिरिक्त आप द्वारा रचित
१. खरतरगच्छ-पट्टावली, पत्र ४ २. खरतरगच्छ-पट्टावली, पत्र ४ ३. खरतरगच्छ-पट्टावली, पत्र ४ ४. खरतरगच्छ-पट्टावली, पत्र ४-५
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