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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ आज 86 वर्ष की उम्र में भी तप करने में पीछे नहीं रहते । अत्यंत जितेन्द्रिय, निरभिमानी कैसे आचार्य भगवंत के दर्शन हृदय के पाप धोने में समर्थ है । इनके साथ में अगर अपना सामीप्य हों गया तो अपने जीवन की बेटरी भी चार्ज हो आत्म कल्याण को कर सकती है । दर्शन ज्ञान चारित्र एवं तप की साक्षात् प्रतिकृति सम पूज्य आचार्य श्री सतत खूब खूब शासन प्रभावना करें । इनके हाथ में ऐसा जादू है । इनके हाथों से जिस भाग्यशाली को दीक्षा मिलती है उनका जीवन धन्य बन जाता है । इसमें कोई शंका नहीं । मेरे भी दीक्षादाता गुरु आप ही होने से मेरा अनुभव रहा है कि आपके वासक्षेप में प्रभाव है। जहाँ जहाँ भी आप प्रतिष्ठादि करवाते हैं, वहाँ गांव नगर की उन्नति एवं बढ़ावा होता है । आपके सान्निध्य में कई संघ निकले । कई अंजनशलाका, प्रतिष्ठाएं आपने करवाई । आपके सुविनीत शिष्य आपकी खड़े पैर सेवा करते हैं । जो अत्यंत सराहनीय है जब-जब भी आपके वंदनादि का लाभ मिला ... कोई न कोई नई प्रेरणा हमें मिली है । आपकी कृपा दृष्टि हम पर सतत बनी रहें । आपका सुउज्ज्वल चारित्र हमारे पाप मेल को धोकर आत्मा को स्वच्छ बनाएं । इसी कामना के साथ आपश्री के चरण कमलों में हमारा सविनय शत-शत वंदन । महान व्यक्तित्व के धनी - श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. साध्वी तरुणप्रभाश्री मझधार में भी किनारा मिल गया, तूफानों में सहारा मिल गया, गजब है गुरू नाम का करिश्मा, अंधेरे में भी उजाला मिल गया ।। पुष्प वाटिका में अनेकानेक मन मोहक पुष्प प्रातः काल में खिलते हैं तथा अपनी रंगीन आभा एवं मनोहर सौरभ छटा को बिखेरते हुए सन्ध्या सुन्दरी के समय ममतामयी क्षमाशील धरती की गोद में अपने आप को समर्पित कर देते हैं । ठीक वैसे ही विश्व की सुरम्य मधुर वाटिका रूप मरुधर भूमि की ऐतिहासिक नगरी बागरा, जहां परम पूज्य श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. ने व्याख्यान वाचस्पति की महान् पदवी प्राप्त की थी । वो नगरी कितनी अनुपम और महान होगी । जिसका वर्णन हम जिह्वा से नहीं कर सकते हैं । ऐसी ही सुरम्य नगरी बागरा में एक बालक सुमन (पूनमचन्द) के रूप में श्रीमान् ज्ञानचन्दजी की धर्मपत्नी उजमबाई की रत्नकुक्षि से उदित हुआ था । मरुधर भू की शुभ नगरी बागरा जहां जन्म तुम पाया था। ज्ञानचन्द पिता जननी उजम कुल को जग में सरसाया था || भले ही पुष्प कितनी दूरी पर क्यों न खिले, मगर उसकी गंध छिप नहीं सकती हैं । वैसे ही होनहार बालक पूनमचन्द के जन्मते ही सर्वत्र खुशियाँ छाने लगी । होनहार बालक के लक्षण पहले ही दिख जाते हैं । होनकार बिरवान के, होते चिकने पात" क्योंकि अम्बर पर जब सूर्य उदित होता है, तब केवल प्रकृति ही नहीं समस्त जगत हर्ष विभोर हो जाता है, सारी धरा उजाले से भर जाती है । गुलाब का एक फूल डाल पर खिल जाता हैं, तब वो डाल ही नहीं, पूरा मधुवन महक उठता है और जब किसी असाधरण विभूति का धरातल पर अवतरण होता है तो केवल परिवार ही नहीं, सारा विश्व प्रफुल्लित हो उठता है । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 22 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Fonts
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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