SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन पंथ मेरी सीमित बुद्धि आपके विशाल गुणों का अंकन करने में असमर्थ हैं, तो भी भक्ति भावना से निमज्जित होकर मंगल कामना करती हूं । आपके दीक्षा जीवन के स्वर्णिम वर्ष व्यतीत हुए हैं, भविष्य में भी आप चिरकाल तक स्वस्थ रहते हुए अपनी साधना में संलग्न रहते हुए त्रिस्तुतिक संघ का नेतृत्व करते रहें । गुरुदेव ! आप दीर्घायु हों और जैन समाज की यह धर्म पताका इसी प्रकार ऊंची रहे और हम भी आपकी निश्रा में आत्मश्रेय के लिए अधिकाधिक प्रगति करते रहे । इसी कामना के साथ मेरी परम आस्था के केन्द्र पू राष्ट्रसंत शिरोमणि श्रद्धेय गुरुदेव श्री हेमेन्द्र सूरिजी के चरणों में हार्दिक वंदन ! अभिनंदन । पू. गच्छाधिपति हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की जीवन झरमर साध्वी मणिप्रभाश्री गच्छाधिपति गुण गणं गणिनं सुसौम्यं वंदामि वाचक वरं श्रुतदान दक्षं | जैनशासन रत्नों की खान है । पंच परमेष्ठी भगवंत इसकी शान है । आचार्य का स्थान इन पंच परमेष्ठी में बीच में रहा हुआ है। "तित्थयर समो सूरि" तीर्थकर का काल अति अल्प होता है । प्रभु वीर की हाजरी मात्र 42 वर्ष रही । प्रभु वीर के निर्वाण के 3 वर्ष और 81/2 महिने के बाद पांचवां आरा बैठा । इस पांचवें आरे के पूरे 21000 वर्ष तक प्रभु महावीर स्वामी का शासन अखंड रूप से चलने वाला है । और इस शासन की धुरा को वहन करेंगे अनेकानेक सूरि सम्राट, तीर्थंकर की गैरहाजरी में आचार्य भगवंत का स्थान तीर्थकर के जितना ही महत्वपूर्ण होता है । इस शासन में पू. हरिभद्रसूरि, पू. हेमेचंद्राचार्य, पू. सिद्धसेन दिवाकर सूरि, पू. मुनिसुंदर सूरि जैसे महाप्रभावक अनेक आचार्य हुए । जिन्होंने स्वयं अनेक विध कष्टों का सामना किया, स्वयं ने जहर पिया और समाज को अमृत दिया । शासन पर आने वाले विघ्नों के सामने अडिग खड़े रहे । बीसवीं सदी में हुए पू. प्रातः स्मरणीय विश्व पूज्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज। जिन्होंने शिथिलाचार को दूर करके वर्तमान साधु जीवन को अत्यंत सुदृढ़ बनाया था । उन्हीं की परम्परा में षष्टम पट्टधर के रूप में हमें प्राप्त हुए है पू. गच्छाधिपति हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. | पू. गच्छाधिपति का जीवन अत्यंत शांत सरल करुणा से भरा है । चारित्र पालन की अत्यंत लगन । अत्यंत निस्पृह निष्परिग्रही एवं छोटी से छोटी वस्तु की भी तकेदारी रखना इनका स्वभाव है । जिस प्रकार गांधीजी अपने जीवन में किसी वस्तु की उपेक्षा नहीं करते थे, ठीक उसी प्रकार पू. सूरिजी भी किसी वस्तु का पूरा कस उठाए बिना फेंक नहीं देते । जिस प्रकार वस्तु की कीमत इन्होंने की है, उसी प्रकार सर्व जीवों के साथ भी मैत्री भावना द्वारा जीवों का भी मूल्यांकन किया है । छोटा या बड़ा, बाल या वृद्ध स्त्री या पुरुष श्रीमंत या रंक सभी को समभाव से देखते हैं। सभी को अपनी मीठी एवं करुणा से भरी वाणी से धर्म में जोड़ देते हैं । इनकी वाणी में वह आभा एवं वह जोश है तथा वह सिद्धि है जो पूर्व के महापुरुषों में हम पाते हैं । इनका वचन कभी निष्फल नहीं जाता । मनोबल भी इन पूज्यश्री का उतना ही तगड़ा है । जो एक बार सोच लेते हैं, उसको करके बताते हैं | जिस प्रकार मनुष्य की कीमत करते हैं, उसी प्रकार सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव रूपी रतन के जतन करने में भी कुशल झवेरी हैं । एक भी जीव अपनी असावधानी से मर न जाए इसकी पूरी जागृति रखते हैं । इसी हेतु पूज्यश्री का समय तेज ब्रह्म तेज खूब खूब बड़ा है । इतना ही नहीं प्रभु भक्ति की साधना भी आपकी अद्वितीय है । आप मंदिर में जब स्तवन बोलते उस समय सारे भक्त अपनी क्रिया को छोड़कर आपके स्तवन में लयलीन बन जाते हैं । हेमेन्ट ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 21 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्ध ज्योति Chintain Poon
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy