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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ । 4विरल महापुरुष साध्वी सिद्धान्तगुणाश्री जीवन को मधुर बनाया आपने | मधुरता से जीवन को संजाया आपने || सद्गुण गरिमा से मंडित होकर - शालीनता से संयम दीप जलाया आपने || जड़ रत्न की भांति नर रत्न भी अपनी आत्मीक प्रभा से देदीप्यमान है । जैन जगत में ऐसे अनेक नर रत्नों ने अपनी निर्मल प्रभा से जग को आलोकित किया है । अपना आत्म साध्य तो उनका लक्ष्य ही है । परन्तु अपने तेजस्वी जीवन में अन्य भव्यात्माओं को भी आत्म साधना के पथ पर अंगुली पकड़कर चलना भी सिखाया है । वे महापुरुष बागरा नगर के नर रत्न राष्ट्रसंत शिरोमणि पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. आज भी जन जन को साधना मार्ग पर निरन्तर बढ़ने की प्रेरणा देते रहते हैं । जिनके मुख मंडल पर मृदु स्मितता वाणी में मधुरता, भावना में भव्यता हृदय में संवेदनशीलता व विशालता है । दृष्टि में विशालता व्यवहार में कुशलता, अन्तःकरण में कोमलता जिनका मूर्तिमंत जीवन, हृदय दर्पण स्वच्छ व निर्मल है । ऐसे विशाल व्यक्तित्त्व एवम् जिनका जीवन साधनामय उन परमादरणीय गुरुदेव श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के संयम जीवन के 62 बसन्त पूर्ण करके 63 वें वर्ष में प्रवेश करेंगे । यह हमारे जीवन में बहुत प्रसन्नता की बात है । आपका विशाल जीवन और पद विहार यात्रा जन जन के मन को प्रफुल्लित करने वाली है । आपकी असीम कृपा और आशीर्वाद हम सभी को मिलता रहे यही कामना करती हूं। आपका जीवन गुलाब की तरह महकता रहें और उसकी सौरभ से जन गण मन आनंदित होते रहें । सूर्य की तरह आपका व्यक्तित्व हमेशा प्रकाशमान रहे । चांद की तरह अमृत किरणें बरसाते रहो यही शुभ भावना भाती हूं । पूज्य गुरुदेव श्री के चरणों में श्रद्धापूर्वक अपने भावों को समर्पित करती हूं । युग-युग जीओ प्यारे गुरू पर मम जीवन का उद्धार करो । श्रद्धा भक्ति के उन सुमनों को श्री चरणों में स्वीकार को | राष्ट्रसंत शिरोमणि का अभिनन्दन हो शत-शत बार साध्वी भव्यगुणाश्री महापुरुष मानव समाज के गुलशन में खिले हुए ऐसे फूल हैं जो कभी मुरझाते नहीं, कभी कुम्हलाते नहीं । उनकी जिंदगी फूल की तरह सुंदर खिली हुई होती है | उनकी खुशबू फूल की सौरभ तरह सुरभित होती है । उनकी खुशबू से समाज की बगिया महकती रहती है । मानव समाज उनसे शोभा पाता है । गुलशन में तो कुछ फूल खिलते हैं । किंतु महापुरुषों के जीवन में सद्गुणों के हजार-हजार फूल खिला करते हैं । उनके जीवनाकाश पर ज्ञान का सूर्योदय शान्ति का इन्दु सदा उदीयमान रहता है । वे जैसे भीतर में होते हैं, वैसे ही बाहर और जैसे बाहर वैसे ही भीतर होते हैं । विपरीतता उनसे कोसों दूर रहती हैं। इसलिए तो मानव समाज उनके चरण कमलों में श्रद्धा के सुमन अर्पित कर अपने आपको कृत्तार्थ और धन्य समझता है । उन्हें पूजता है और देवता मानता है । हेगेन्च ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 18 हेमेन्द्र ज्योति* हेगेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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