SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ उन्हीं महापुरुषों की अमर कड़ियों में वर्तमान गच्छाधिपति राष्ट्रसंत शिरोमणि प. पू. आचार्यदेवेश श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. भी एक दिव्य कड़ी है। तम्हारे त्याग से अलौकिक सारा जहाँ है | तुम्हारे नाम से बना अनूठा समाँ है | किस प्रतिभा को बखानूं मैं तुम्हारी | नभ मंडल में गूंज रही तुम्हारी महिमा है || आज पूज्य गुरुदेव जीवन की जिस ऊँचाई पर पहुंचे हैं, सहज में नहीं पहुंच गये, दीर्घकाल तक तपस्या से होकर गुजरे हैं । यथार्थ की कठोर असि धारा पर चलकर उन्होंने जीवन-महल का निर्माण किया है । हमारी दृष्टि केवल सतह पर वर्तमान में टिकी होती हैं । परंतु हम गहराई में कहां जाते हैं । हम देखते हैं कि वट वृक्ष बनने से पूर्ण बीज को धरती की कोख में एवं अंधकार में जाना पड़ता हैं । तब कहीं जाकर वह साधारण बीज आकाश की ऊंचाइयों को छू पाता है । सदियों से शस्य श्यामला भारत वसुन्धरा ऐसे नररत्नों को जन्म देती आई है । आज भी यह क्रम जारी है, निरंतर जारी है। पू. गुरुदेव का यह जीवनोत्सव यह अमृतमहोत्सव हमारे जीवन में बहार लाए, हमारे जीवन को और समाज को नया मोड़, नयी दिशा एवं नयी चेतना दे और यह अमृत महोत्सव हमारे जीवन का सौभाग्य बन जाए । अनन्त वात्सल्य के झरने से आप्लावित होकर हम सदभागी बने हैं और चिरकाल तक इसी सद्भाग्य को पाते रहें यही अंतर की मंगल मनीषा है । हे दयालु परमात्मा ! आज इन ज्योतिर्मय क्षणे में हम वंदन करते हैं । हृदय से अभिनन्दन करते हैं तथा मंगल क्षणों में चिरजीवन के लिए प्रार्थना भी करते हैं। ऐसे प्रकाशपुंज, तेजस्वी रत्न, ज्ञानपुंज को असीम श्रद्धा के साथ कोटि कोटि वंदना । जनम-जनम तक तव चरणों का साज मिले | बढ़े कदम जिनपथ की ओर नव निर्माण का राज मिले | जीवन को इस मधुर एवं पावन सुबेला में प्रभु से प्रार्थना कि हजारों वर्ष की उम्र आपको मिले | मतप व त्याग के प्रतीक आचार्य भगवन्त साध्वी विमलयशाश्री त्याग व तपस्या से अन्तःकरण पावन व निर्मल बनता है । गुरु से ज्ञान, मार्गदर्शन एवं दिशाबोध होता है । गुरु कृपा से लक्ष्य प्राप्ति में संदेह नहीं रहता । तप व त्याग की प्रतिमूर्ति परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के 'जन्म अमृत महोत्सव' एवं 'दीक्षा हीरक जयन्ती के शुभ अवसर पर आपश्री के दीर्घायु होने एवं स्वस्थ रहने की मंगल कामना करती हूं । साथ ही यह आशा करती हूं कि आपके मार्गदर्शन में समाज धर्माराध ना व तपस्या के सुपथ पर निरन्तर अग्रसर होकर जीवन को सार्थक बनाने में जुटा रहेगा । सहजता, सरलता व प्रसन्नता आपश्री के गुण हैं । आपके सान्निध्य में जो कोई रहता है, उसके साथ सदैव ही आप स्नेह एवं वात्सल्यपूर्ण व्यवहार करते हैं । मुझे भी पूज्य आचार्यदेव के सान्निध्य में रहने का सुअवसर मिला है । पूज्य आचार्यश्री तो इस जीव जगत् को परमात्मा की अभिव्यक्ति ही मानते हैं और हमें प्राणिमात्र के कल्याण हेतु बड़े ही धीर, गंभीर और शांत स्वर में फरमाते हैं - "महान पुण्य के उदय से संयम जीवन मिला है । भगवान महावीर के शासन के प्रति सदैव वफादार रहना ।" हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 19 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति w.sanelibrary.org)
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy