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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन पंथ आप तिरे औरन को तारे साध्वी महेन्द्र श्री अपने लिये तो सभी जीते हैं, परन्तु दूसरों के लिये जो जीता है वही महान है । आत्मीयता की उस भावना के विकास का भी एक क्रम होता है । कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जो केवल अपने ही स्वार्थ तथा अपने ही शारीरिक सुख का ध्यान रखते हैं । कुछ ऐसे होते हैं जो अपने परिवार व सगे सम्बन्धियों की हित चिंता में लीन रहते हैं । उनसे जो उच्च होते हैं वे अपने देश के हित व सुख-समृद्धि के लिये प्रयास करते हैं किंतु जिनका हृदय उनसे भी अधिक विशाल होता है वे विश्व के प्रत्येक प्राणी के सुख को अपना सुख और दुःख को अपना दुःख समझते हैं। उनके हृदय में भगवान, महावीर की शिक्षा के अनुसर सदैव यही कामना रहती है सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् || इसका तात्पर्य यह है कि सभी प्राणी सुखी हो, सभी निरोग रहें, सभी का कल्याण हो, कोई भी कष्ट का भागी न बने। परम पूजनीय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. सदैव विश्व के प्राणिमात्र के कल्याण की कामना करते रहते हैं । किसी भी प्राणी को दुःखी देखकर उनका कोमल हृदय द्रवित हो जाता है । और वे उसका कष्ट दूर करने में लग जाते हैं । आप अपनी धर्माराधना संयमाराधाना के द्वारा अपना कल्याण करने में तो लगे ही हैं अन्य प्राणियों के कल्याण के लिये भी सतत प्रयत्न शील बने रहते हैं । ऐसे पूजनीय आचार्यश्री की दीर्घायु की कामना करते हुए उनके चरणों में सविनय वंदना करती हूं । यथानाम तथागुण साध्वी हेमप्रभाश्री बहुरत्ना वसुन्धरा, धरती माता विश्व के सम्पूर्ण भार को वहन करती है, लेकिन जब महान पुरुष पृथ्वी पर अवतरित होते हैं उस समय धरती माता को गौरव होता है। स्व-पर कल्याण के लिए ही महान विभूतियों का जन्म होता है । इसलिये ऐसे संतो, त्यागी तपस्वियों के जन्म से पृथ्वी अपने को धन्य, कृतार्थ मानती हैं । भारत भूमि रत्नगर्भा वसुन्धरा कही गई है। समय समय पर इस धरा ने समाज की सुरक्षा हेतु, दिशा देने के लिए समय अनुकूल महापुरुषों को जन्म दिया है। जिन्होंने अपने तप त्याग और संयम पूर्ण जीवन से समाज में क्रान्ति की एह लहर छोड़ कर उसे मोक्ष पथगामी बनाया है। कहा है : चांद तो होता गगन का, चांदनी सबके लिए बांसुरी चाहे पराई हो, रागिनी सब के लिए बांध सकते हैं फूल लेकिन गंध बन्ध सकती नहीं दीप किसी का भी हो, रोशनी सब के लिए || चन्द्रमा भले आकाश का कहा जाय परन्तु इसका प्रकाश सभी के लिए होता है, बांसुरी भले एक व्यक्ति की हो परन्तु उस का सुर सब के लिए होता है । फूल चाहे उद्यान में हो फिर भी उसकी सुगंध सबके लिए होती है। वैसे ही श्री हेमेन्द्र सूरिजी त्रिस्तुतिक परम्परा के हों मगर उनका प्रेरणादायी क्षमारूपी जीवन उज्ज्वल चरित्र सभी के लिए है। हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 17 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति For Pilaaina
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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