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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ की प्राप्ति पर बल देता है। जैन धर्म संसारी प्राणी को अपने शुद्ध स्वरूप अर्थात् संपूर्ण कर्मों से निर्जरित, परम विराट अवस्था पर प्रतिष्ठित कराता है। संसारस्थ प्राणी की विकासात्मक यात्रा, काम, अर्थ, धर्म, और मोक्ष नामक पुरुषार्थ चतुष्टय पर आधृत है जिनमें परम पुरुषार्थ मोक्ष को माना गया है क्योंकि इसमें अनन्त आनन्द की प्राप्ति होती है। धर्म ही नवीन कर्मों के बंधनों को रोककर पूर्व बद्ध कर्मों की निर्जरा में प्रमुख कारण होता है, इसलिए वह मोक्ष का साक्षात् कारण / साधन / निमित्त बनता है । 1. ऋग्वेद 2. अथर्ववेद 3. ऐतेरेय ब्राह्मण 4. छान्दोग्योपनिषद् 5. मनुस्मृति 6. पूर्वमीमांसा सूत्र जैमिनि 7. मत्स्यपुराणा 8. वायुपुराण 9. पराशर माधवीय 10. तैत्तिरीयोपनिषद् 11. याज्ञवल्क्य स्मृति 12. उत्तराध्यपन सूत्र संदर्भ ग्रन्थ हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 13. समवायांग 14. भगवती सूत्र 76 15. सूत्र कृतांग 16. आचारांग निर्युक्ति 17. दशवैकालिक, जिनदास चूर्णि 18. स्थानांग वृति आचार्य अभयदेव 19. प्रज्ञापनावृति, आचार्यमलय गिरि 20. योगावतार द्वात्रिंशिका 21. ध्यानशतक 22. आवश्कहरिभद्री टीका 23. प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार 24. ओघ नियुक्ति । अ 'मंगलकलश 394, सर्वोदय नगर, आगरा रोड, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.) क्षमा अमृत है, क्रोध विष है। क्षमा मानवता का अतीव विकास करती है और क्रोध उसका सर्वथा नाश कर देता है। क्षमाशील में संयम, दया, विवेक, परदुःख भंजन और धार्मिक निष्ठा ये सद्गुण निवास करते हैं क्रोधावेशी में दुष्चारिता, दुष्टता, अनुदारता, परपीड़कता आदि दुर्गुण निवास करते हैं और वह सारी जिंदगी चिन्ता, शोक एवं संताप में घिर कर व्यतीत करता है। उसको क्षण भर भी शांति से सांस लेने का समय नहीं मिलता। इस लिये क्रोध को छोड़ कर एक क्षमागुण को ही अपना लेना चाहिये, जिससे उभय लोक में उत्तम स्थान मिल सके। क्षमागुण सभी सद्गुणों की उत्पादक खान है। इस को अपनाने से अन्य सर्व श्रेष्ठ गुण अपने आप मिल जाते हैं। PERRAAT श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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