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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ अमरीका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. रैमण्ड ए. मूडी जूनियर ने कई वर्षों तक मरणोत्तर जीवन की दिशा में शोध-प्रयास किया है। अपने अध्ययन निष्कर्ष उन्होंने "लाइफ ऑफ्टर लाइफ” नामक पुस्तक में प्रस्तुत किये हैं। डॉ. लिट्जर, डॉ. मूडी और डॉ. श्मिट आदि जिन-जिन पाश्चात्य वैज्ञानिकों (थेनेटालोजिस्ट) ने जितनी भी मृत्युपूर्व तथा मरणोत्तर घटनाओं के देश - विदेश के विवरण संकलित किये हैं, उन सबका सार यह था कि “मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है। मृत्यु के समय केवल आत्मचेतना ही शरीर से पृथक् होती है। इससे भारतीय मनीषियों की इस विचारधारा की पुष्टि होती है कि मृत्यु का अर्थ जीवन के अस्तित्व का अन्त नहीं है। जीवन (जीव) तो एक शाश्वत सत्य है, उसके अस्तित्व का न तो आदि है, न अन्त । भगवद्गीता के अनुसार - "न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था अथवा ये (राजा) लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि हम सब लोग इससे आगे नहीं रहेंगे।" वास्तव में जन्म न तो जीवन (जीव या आत्मा) का आदि है और न ही मृत्यु उसका अन्त। अतः मृत्यु के बाद होने वाले ये अनुभव दृश्यों की बारीकियों के हिसाब से भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हैं, यह स्वाभाविक है। क्योंकि व्यक्ति का मन भी अपने सूक्ष्म संस्कारों को लेकर वही रहता है, उसकी मनः स्थिति दृश्य जगत् को अपने चश्में से देखती है। परन्तु सबकी अनुभूतियों में जो समान तत्व है, वही वैचारिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्व है। वह है - मरणोत्तर पुनः जीवन का अनुभव। इन सभी अनुभूतियों से यही स्पष्ट होता है कि मरणोत्तर जीवन भी है। देह नाश के साथ ही वह जीवन समाप्त नहीं हो जाता, वह तो निरन्तर तब तक प्रवाहित होता रहता है, जब तक जन्म-मरण से और कर्मों से प्राणी सर्वथा मुक्त न हो जाए। अतः संसारी-जीव के जीवन का अविच्छिन्न प्रवाह आरोह-अवरोह के विभिन्न क्रम संघातों के साथ निरन्तर गतिशील रहता है। साथ ही मृत्यु के बाद के जीवन अनुभूतिक्रम का वर्तमान अनुभूतियों के साथ एक प्रकार का सातत्य रहता है। पूर्वजन्म-पुनर्जन्म-सिदान्त पर कुछ आक्षेप और उनका परिहार : पूर्वोक्त दोनों पुनर्जन्म विरोधी वर्गों के द्वारा इस सिद्धान्त पर कुछ लोग यह तर्क देते हैं, जिनका निराकरण भारतीय दार्शनिक, पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों एवं परामनोवैज्ञानिकों द्वारा अकाट्य तर्को, युक्तियों तथा प्रत्यक्ष अनुभूतियों के आधार पर दिया गया है। 1. प्रथम आक्षेप : विस्मृति क्यों ? - पुनर्जन्म के विरूद्ध कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि “यदि जीवन का अस्तित्व भूतकाल में था तो उस समय की स्मृति वर्तमान में क्यों नहीं रहती?" इस संबंध में विचारणीय यह है कि घटनाओं की विस्मृति - मात्र से पुनर्जन्म का खण्डन नहीं हो जाता। इस जन्म के प्रतिदिन की घटनाओं को भी हम कहाँ याद रख पाते हैं ? प्रतिदिन की भी अधिकांश घटनाऐं विस्मृत हो जाती हैं। सिर्फ स्मरण न होना ही घटना को अप्रमाणित नहीं कर देता। स्मृति तो अपने जन्म की भी नहीं रहती। इस आधार पर यदि कहा जाए कि जन्म की घटना असत्य है, तो इसे अविवेकपूर्ण ही कहा जाएगा। इसका समाधान “शास्त्रवार्तासमुच्चय' में भी इस प्रकार दिया गया है कि पूर्वजन्म की स्मृति का कारण पूर्वकृत कर्म होते हैं। सभी जीवों के कर्म एक से नहीं होते। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय-क्षयोपशम में भी तारतम्य होता है। इसलिए सभी जीवों को पूर्वजन्म की स्मृति एक सरीखी नहीं होती और किसी-किसी को होती भी नहीं है। कुछ आक्षेपक इस प्रकार का आक्षेप भी करते हैं - "यदि पुनर्जन्म का सिद्धान्त सत्य है तो पूर्वजन्म की अनुभूतियों की स्मृति सबकी उसी प्रकार होनी चाहिए। जिस प्रकार बाल्यावस्था और युवावस्था की स्मृति वृद्धावस्था में होती है।" इस आक्षेप का परिहार हीरेन्द्रनाथदत्त' ने इस प्रकार किया है कि स्मरण शक्ति का सम्बन्ध प्राणी के मस्तिष्क से होता है। वह (पूर्वजन्मगत मस्तिष्क) नष्ट हो चुका होता है। इसलिए सबकी एक सी स्मृति नहीं होती। हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 21 हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति aanta maru
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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