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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ मरणोत्तर जीवन में या मृत्यु से पूर्व वैसी ही आकृति एवं ज्योतिर्मय प्रकाश दिखाई देता है। उदाहरणार्थ - हिन्दुओं को यमदूत या देवदूत दिखाई देते हैं। मुसलमानों को अपने धर्मशास्त्रों में उल्लिखित प्रकार की झांकियाँ दीख पड़ती है। ईसाइयों को भी उसी प्रकार बाइबिल में वर्णित पवित्र आत्माओं या दिव्यलोकों के दर्शन या अनुभव होते हैं।" "पाश्चात्य देशों के कई लोग, जिन्हें व्यक्तिगत रूप से किसी धर्म या मत विशेष के प्रति आकर्षण या लगाव नहीं था, ऐसे अनुभवों से गुजरे, मानों एक दिव्य-ज्योतिर्मय आकृति उनके समक्ष प्रकट हुई हो।" पाश्चात्य दार्शनिक गेटे, फिश, शोलिंग, लेसिंग आदि ने अपने ग्रन्थों में पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया है। - "प्लेटो" ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है। "जीवात्माओं की संख्या निश्चित है, उनमें घट बढ़ नहीं होती ) " (मृत्यु के बाद नये) जन्म के समय (किसी नये) जीवात्मा का सृजन नहीं होता, वरन् एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रत्यावर्तन होता रहता है।" "लिवनीज" ने अपनी पुस्तक "दी आयडियल फिलॉसॉफी ऑफ लिबर्टीज" में लिखा है - मेरा विश्वास है कि मनुष्य इस जीवन से पहले भी रहा है।" प्रसिद्ध विचारक 'लेस्सिंग' अपनी प्रख्यात पुस्तक "दी डिवाइन एज्युकेशन ऑफ दि ह्युमन रेस" में लिखते हैं "विकास का उच्चतम लक्ष्य एक ही जीवन में पूरा नहीं हो जाता, वरन् कई जन्मों के क्रम में पूर्ण होता है। मनुष्य ने कई बार इस पृथ्वी पर जन्म लिया है और अनेक बार लेगा ।" - ईसा मसीह ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था - "मैं जीवन हूँ, और पुनर्जीवन भी। जो मेरा विश्वास करता है, सदा जीवित रहेगा, भले ही वह शरीर से मर चुका ही क्यों न हो।" यह कथन पुनर्जन्म के अस्तित्व को ध्वनित करता है। 'बाइबिल' की एक कथा में भी जीवन का अन्त है। वस्तुतः कोई मरता नहीं, जीवन शाश्वत है। " यहूदी विद्वान 'सोलमन' ने लिखा है। "इस जीवन के बाद भी एक जीवन है। देह मिट्टी में मिलकर एक दिन समाप्त हो जाएगी, फिर भी जीवन अनन्तकाल तक यथावत बना रहेगा ।" 16 दार्शनिक 'नशादृसंश' ने कहा है - आत्मा की अमरता को माने बिना मनुष्य को निराश और उच्छृंखलता से नहीं बचाया जा सकता। यदि मनुष्य को आदर्शवादी बनाना हो तो अविनाशी जीवन (जीव - आत्मा) और (पुनर्जन्म तथा) कर्मफल की अनिवार्यता के सिद्धान्त उसके गले उतारने ही पड़ेगें। " - प्रसिद्ध साहित्यकार "विक्टर ह्यूगो" ने लिखा है "मैं सदा विश्वास करता रहा - शरीर को तो नष्ट होना ही है, पर आत्मा को कोई भी घेरा कैद नहीं कर सकता। उसे उन्मुक्त विचरण करने (एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने) का अवसर सदैव मिलता रहेगा।" एक बार 'प्लेटो' ने 'सुकरात' से पूछा - "आप सभी विद्यार्थियों ने पहले (पूर्वजन्म में) अभ्यास किया है, वे उस पाठ को शीघ्र समझ-सीख लेते हैं, जिन्होने कम अभ्यास किया है, वे जरा देर से समझ-सीख पाते हैं, • और जिन्होंने अभी (इस जन्म में) सीखना प्रारंभ किया है, वे बहुत अधिक समय के बाद सीख - समझ पाते हैं ।" सुकरात ने सामाधान किया - "जिन विद्यार्थियों को एक सरीखा पाठ देते हैं, परन्तु कोई विद्यार्थी उसे एक बार में, कोई दो बार में और तीन बार में सीख पाता है, इसका क्या कारण है ?" इस संवाद में पूर्व का न्यूनाधिक अभ्यास पूर्वजन्म को सिद्ध करता है। प्रसिद्ध दार्शनिक 'गेटे ने एक बार अपनी एक मित्र श्रीमती वी.स्टेन" को पत्र लिखा था - "इस संसार से चले जाने की मेरी प्रबल इच्छा है। प्राचीन समय की भावनाएँ मुझे यहाँ एक घड़ी भी सुख में बिताने नहीं देती। यह कितनी अच्छी बात है कि मनुष्य मर जाता है और जीवन में अंकित घटनाओं के चिन्ह मिट जाते हैं। वह पुनः परिष्कृ त संस्कारों के साथ वापस आता है।" इस पत्र के लिखने का उद्देश्य चाहे जो हो, परन्तु 'गेटे' के उपर्युक्त कथन में पूर्वजन्म में विश्वास होने का दृढ़ प्रमाण मिलता है। हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 20 हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति www.gamebo
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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