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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ लोक व्यवहार में भी देखा जाता है कि एक ही स्थल पर एक ही घटना के बहुत से दर्शक होते हैं पर उन सभी दर्शकों और श्रोताओं की स्मृति एक सरीखी नहीं होती। इसी प्रकार सभी को पूर्वजन्म की स्मृति एक सी नहीं रहती, किन्हीं को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं भी होती, किसी किसी की होती है। इसका समाधान "शास्त्रवार्तासमुच्चय" में किया गया है कि पूर्वजन्म के संस्कार तो आत्मा में कार्मण शरीर के साथ पड़े रहते हैं। वे अवसर और निमित्त पाकर जागृत होते है। इसलिए यद्यपि पूर्वजन्म की पूरी स्मृति एक साथ नहीं होती, किन्तु उस प्रकार का कोई प्रबल निमित्त मिलने पर तथा मतिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम प्रबल होने पर एवं तथारूप ऊहापोह करने पर किसी किसी को पूर्वजन्म की स्मृति (जाति स्मरण ज्ञान) हो भी जाती है। में पूर्वजन्म को न मानने वालों का एक तर्क यह भी है "यदि पूर्वजन्म है, तो पूर्वजन्म में अनुभूत सभी विषयों का स्मरण क्यों नहीं होता ? कुछ ही विषयों का स्मरण क्यों होता है ? अर्थात् पूर्वजन्म में मैं कौन था, कहाँ था, कैसा था ? इत्यादि सभी विषयों का स्मरण क्यों नहीं होता ?" इसके उत्तर में न्यायिक वैशेषिकों का कहना है कि आत्मगत जो पूर्व संस्कार इस जन्म में उद्बुद्ध (जागृत) होते है, वे संस्कार ही स्मृति को पैदा करते है । उदबुद्ध संस्कार ही स्मृति के कारण है, अभिभूत संस्कार स्मृति को जन्म नहीं देते। संस्कार हों, वहां स्मृति हो ही, ऐसा नियम नहीं है। स्मृति होने के लिए पहले उस संस्कार का जागृत होना आवश्यक है। इस जन्म में जिन बातों का बचपन अनुभव किया था, क्या उन सभी बातों का वृद्धावस्था में स्मरण होता है ? नहीं होता। बचपन में अनुभूत विषयों के संस्कार तो वृद्धावस्था में भी विद्यमान रहते हैं, पर वे सभी जागृत नहीं होते। हम जानते हैं कि उत्कृष्ट दुख के कारण कई व्यक्ति परिचित व्यक्तियों को भी भूल जाते है, क्योंकि दुख ने उन परिचित व्यक्तियों के संबंध में पड़े हुए संस्कारों को अभिभूत कर दिया है। इसी प्रकार जीव की मृत्यु होने पर वह उसके अनेक सुदृढ़ संस्कारों को अभिभूत कर देती है । परन्तु पुनर्जन्म या देहांतर प्राप्ति होने पर उसके अनेक पूर्व संस्कार जागृत हो जाते है। ऐसे संस्कार उद्बोधक (निमित्त) अनेक प्रकार के होते है, जो विशिष्ट प्रकार के संस्कारों को जागृत करते है। उनमें से एक उद्बोधक है - जाति (जन्म) । जीव जिस प्रकार का जन्म प्राप्त करता है, उसके अनुरूप संस्कारों का उद्बोधक है - वह जन्म । (जाति)। जाति के अतिरिक्त धर्माधर्म (पुण्य-पाप-कर्म) भी अमुख प्रकार के संस्कारों के उद्बोधक हैं। पूर्व जन्म के जाति-विषयक जो संस्कार जिस में उबुध होते है, उसी को जाति स्मरण ज्ञान होता है - मैं कौन, कहाँ और कैसा था ? " जैन आगमों में जन्म मरण को इसलिए दुख रूप बताया है कि प्राणी को जन्म और मृत्यु के समय असहय दुखानुभव होता है। नये जगत में प्रवेश कितना यातना पूर्ण होता है कि पूर्व जन्म की स्मृतियां प्रायः लुप्त हो जाती है। हम देखते हैं कि किसी व्यक्ति को गहरा आघात, सद्मा, भयंकर चोट, उत्कट भय, असह्य शारीरिक पीड़ा या कोई विशेष संकट आदि होने पर वह मूर्च्छित (बेहोश हो जाता है, उस समय उसकी स्मृति प्रायः नष्ट सी हो जाती है। प्रसिद्ध विचारक 'कान्चूग' ने स्मृति का विशलेषण करते हुए कहा - - "जन्म से पूर्व शिशु में पूर्व जन्म की स्मृति होती है, लेकिन जन्म के समय उसे इतने भयंकर कष्टों के दौर से गुजरना पड़ता है कि उसकी सारी स्मरण शक्ति लुप्त हो जाती है।" इसी प्रकार गहरा आघात लगने पर भी स्मृति नष्ट हो जाती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इस पर सोचा जाए तो यह अच्छा ही है। यदि पहले (पूर्वजन्म) की ढ़ेर सारी स्मृतियां बनी रहें तो इतनी विपुल स्मृतियों के ढ़ेर वाला उसका दिमाग पागल सा हो जाएगा। पूर्व के सारे घटना चित्र मस्तिष्क में उभरते रहें तो वह उसी में तल्लीन होकर जगत् के व्यवहारों से उदासीन हो सकता है। असह्य संकटग्रस्त अवस्था में व्यक्ति मूर्च्छित न हो तो उसका जीवित रहना कठिन है। इसलिए उस समय काम के लायक स्मृति का ही रहना अभिष्ट है। इस पर पुनः प्रश्न उठता है कि दुर्घटना या आघात की स्थिति में मरने के बाद नये जीवन में कतिपय व्यक्तियों को उसकी स्मृति क्यों होती है ? हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 22 हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति For Priva Personal Use Only
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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