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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ (शरीर) समाप्त होते ही चेतना भी समाप्त। चेतना (स्वतंत्र) पहले भी नहीं थी, पीछे भी नहीं रहती। इसलिए न तो पुनर्जन्म है और न ही पूर्वजन्म। जो कुछ है, वह वर्तमान में है, न ही अतीत में है और न भविष्य में। यह वर्ग प्रत्यक्षवादी तथा इहजन्मवादी है। पुनर्जन्म का निषेध करने वाला द्वितीय वर्ग भी प्रकारान्तर से उसका समर्थक : दूसरा - पुनर्जन्म – पूर्वजन्म का निषेध करने वाला वर्ग आत्मा को स्वतंत्र तत्व के रूप में मानता है, कर्म और कर्मफल को भी मानता है। इस वर्ग में यहूदी, ईसाई और इस्लामधर्मी (मुसलमान) आदि एक - जन्मवादी आते हैं। इनकी मान्यता यह है कि मृत्यु के बाद आत्मा (रूह) नष्ट नहीं होती। वह कयामत (प्रलय) या न्याय के दिन तत्सम्बन्धी देव, खुदा या गॉड के समक्ष उपस्थित होती है और वे उसे उसके कर्मानुसार जन्नत बहिश्त (स्वर्ग या हेवन) अथवा दोजख (नरक या हेल) में भेज देते हैं। सामान्यतया यह कहा जाता है कि ईसाई और मुस्लिम धर्मों में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं हैं, परन्तु उनके धर्मग्रन्थों एवं मान्यताओं पर बारीक दृष्टि डालने से प्रतीत होता है कि प्रकारान्तर से वे भी पुनर्जन्म की वास्तविकता को मान्यता देते हैं और परोक्ष रूप से उसे स्वीकार करते हैं। वैसे देखा जाए तो इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म में भी प्रकारान्तर से प्रलय के उपरान्त जीवों के पुनः जागृत एवं सक्रिय होने की बात कही जाती है, जो पुनर्जन्म का ही एक विचित्र और विलम्बित रूप है। "विजडम ऑफ सोलेमन” ग्रन्थ में ईसाह मसीह के वे कथन उद्धृत हैं, जिनमें उन्होंने पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया था। उन्होंने अपने शिष्यों से एक दिन कहा था - "पिछले जन्म का एलिजा ही अब जॉन बैपटिस्ट के रूप में जन्मा था।" बाईबिल के चेप्टर 3 पैरा 3-7 में ईसा कहते हैं – “मेरे इस कथन पर आश्चर्य मत करो कि तुम्हें निश्चित रूप से पुनर्जन्म लेना पड़ेगा।" ईसाई धर्म के प्राचीन आचार्य "फादर औरिजिन" कहते थे- “प्रत्येक मनुष्य को अपने पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुसार अगला जन्म धारण करना पड़ता है। प्रो. मैक्समूलर ने अपने ग्रन्थ “सिक्स सिस्टम्स ऑफ इण्डियन फिलॉसॉफी" में ऐसे अनेक आधार एवं उद्धरण प्रस्तुत किये हैं, जो बताते हैं कि ईसाई धर्म पुनर्जन्म की आस्था से सर्वथा मुक्त नहीं है। ‘प्लेटो' और 'पाइथगोरस' के दार्शनिक ग्रन्थों में इस मान्यता को स्वीकार गया है। 'जोजेक्स' ने अपनी पुस्तक में उन यहूदी सेनापतियों का हवाला दिया है, जो अपने सैनिकों को मरने के बाद फिर पृथ्वी पर जन्म पाने का आश्वासन देकर लड़ने के लिए उभारते थे। सूफी संत “मौलाना रूम” ने लिखा है – “मैं पेड़-पौधे, कीट-पतंग, पशु-पक्षी-योनियों में होकर मनुष्य वर्ग में प्रविष्ट हुआ हूँ और अब देववर्ग में स्थान पाने की तैयारी कर रहा हूँ।" अंग्रेज दार्शनिक हयूम तो प्रत्येक दार्शनिक की तात्विक दृष्टि को इस बात से परख लेते थे कि “वह पुनर्जन्म की मान्यता देता है या नहीं?" ह्यूम कहता है - "आत्मा की अमरता के विषय में पुनर्जन्म ही एक सिद्धान्त है, जिसका समर्थन प्रायः सभी दर्शन शास्त्री करते है। "इन्साइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड एथिक्स" के बारहवें खण्ड में अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के आदिवासियों के संबंध में अभिलेख है कि वे सभी समान रूपसे पुनर्जन्म को मानते हैं। मरने से लेकर जन्मने तक की विधि व्यवस्था में मतभेद होने पर भी यह कहा जा सकता है कि "इन महाद्वीपों के आदिवासी आत्मा की सत्ता को मानते हैं और पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं।" ऐसा कहा जाता है कि ईसा मसीह तो तीन दिन बाद ही पुनः जीवित हो उठे थे। कुछ निष्ठावान ईसाइयों को ईसा मसीह प्रकाश रूप में दीखे, तो यहूदी लोगों ने दिव्य प्रकाशयुक्त देवदूत को देखा। पश्चिम जर्मनी के एक वैज्ञानिक डॉ. लोथर विद्जल ने लिखा है कि मृत्यु से पूर्व मनुश्य की अन्त चेतना इतनी संवेदनशील हो जाती है कि वह तरह तरह के चित्र-विचित्र दृश्य देखने लगता है। ये दृश्य उसको धार्मिक आस्थाओं के अनुरूप होते हैं। अर्थात जिस व्यक्ति का जिस धर्म से लगाव होता है, उसे उस धर्म, “मत या पंथ की मान्यतानुसार हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 19 Ram Amineray
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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