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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ - पत्नी ने कहा • वृद्धावस्था आयेगी तब तक किसने देखा? अभी जो समय हाथ में है, उसका लाभ तो उठा लो । वही वास्तविक जीवन होगा और समय होगा । पति-पत्नी की बातचीत चल ही रही थी कि इतने में एक मुनि गोचरी के लिये पधारे । मुनि को देख कर दोनों सामान्य हो गये । पर मुनि से कोई बात छिपी न रह सकी। किन्तु बोले कुछ नहीं आकर चुपचाप खड़े रहे । सेठानी ने नम्रवाणी में कहा भगवन्! मैं इनसे कह रही थी कि आप स्नानादि से निवृत होकर उपाश्रय जाकर मुनि भगवन्तों के अमृत तुल्य उपदेश सुना करो, जिससे आत्मा का कल्याण एवं आत्मिक शांतिप्राप्त हो । साधुओं की संगति पुण्यवान को ही मिलती है । वह भी बड़ी मुश्किल से । पर यह है कि मेरी बात पर ध्यान हीं नहीं देते? कहते- अभी क्या जल्दी है? बुढापे में देखूंगा। मैं इनसे कहती - जीवन का कोई भरोसा नहीं, जो आज है वह कल नहीं रहेगा । इसी बात पर हम दोनों में नित्य बोल चाल होती है । मेरी बात सुनी अनसुनी कर देते । मुनि बोले "बन्धु ! आपकी पत्नी ठीक ही तो कहती है । धर्म सबसे प्रथम पुरुषार्थ हैं, जीवन के अभ्युदय एवं निश्रेयस का मूल आधार है। धर्म जिससे जीवन का भौतिक नैतिक और आध्यात्मिक विकास हो वह धर्म है। अर्थ से जीवन के व्यावहारिक कार्य सिद्ध होते हैं । अर्थ गृहस्थ जीवन को संचालित करने की धुरा है, इसीके आधार पर सब व्यवहार बनते हैं और चलते हैं ।" आगे मुनि ने कहा- “जीवन में अर्थ का महत्व तो है, किन्तु अर्थ ही सब कुछ नहीं है । अर्थ वही सफल है जो धर्म से प्राप्त हो, जो न्याय नीति एवं मर्यादा के अनुसार प्राप्त हो सके वही अर्थ जीवन में सुख एवं आनन्द दे सकता है। धर्म से विमुख होकर कोई भी प्राणी सुखी नहीं रह सकता, धर्म जीवन का कवच है ।" - सेठ "मुनिवर ! आपका कथन सत्य है। व्यापार में लाभ हानि तेजी-मंदी चलती रहती है। घाटे की पूर्ति करना भी आवश्यक है । फिर मुझे धर्म स्थानक में आने का समय भी तो मिलना चाहिये । गृहस्थ जीवन में अनेक कार्य रहते हैं, उन्हें भी करना पड़ता है ।" मुनि बोले "सेठ समय तो निकालना पड़ता है । जो मनुष्य अपने व्यस्त जीवन में से एक घन्टा या आध घंटा-धर्म श्रवण के लिये निकालते हैं उनका जीवन धन्य है । जैन साहित्य को पढ़ने से तुम्हें ज्ञात हो जाएगा कि धर्म श्रवण का क्या महत्व है ?" यदि तुम्हें समय नहीं मिलता तो 24 घण्टे में से पांच मिनिट तो निकाल सकते हो । उन पांच मिनिट में पांच बार एकाग्रचित होकर प्रभु का स्मरण कर लिया करो । धर्म ध्यान से जीवन आनन्दमय व्यतीत होता है । अरणक श्रावक का नाम तो आपने सुना ही होगा । वे भगवान् मल्ली के शासनकाल के श्रावक थे । धर्म उनके रग-रग में बसा हुआ था । इन्द्र द्वारा की गई प्रशंसा को सुनकर दो देवों ने उनकी धर्म परीक्षा ली जिसमें वे खरे उतरे । रोहिणेय चोर ने अपने कानों में उंगलियां लगा ली फिर भी उसके कानों में प्रभु महावीर के दो शब्द उसके कानों में पड़ गये । जिससे उसका समूचा जीवन ही बदल गया । अन्त में मुनि ने कहा मैंने तुम्हें धर्म का महत्व उदाहरण देकर समझाया । अब भी यदि तुम जीवन को नहीं सुधारो तो मनुष्य जन्म पाना व्यर्थ है । यह कहकर मुनिवर उपाश्रय की ओर चल दिये । मुनि के जाने के पश्चात् सेठ रोशनलाल मुनि के द्वारा कही गयी बातों पर गंभीरतापूर्वक चिन्तन करता रहा। परिणाम यह हुआ कि दूसरे दिन से ही वह उपाश्रय में जाकन मुनिवरों के अमृत तुल्य प्रवचन सुनने लगा । जिससे उसका जीवन ही बदल गया और परोपकार करने लग गया । ज्योति ज्योति 66 हेमेन्द्र ज्योति र ज्योति nal Use Onl panell y.org
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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