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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ भी होता है, वह आगे न जाकर चुपचाप भाई के साथ घर आ गया । पर घर में उसका मन नहीं लग रहा था । थोड़ी देर बाद उसे मद्यपान की याद सताने लगी उसने मदिरालय जाने का विचार किया और विचार को मूर्तरूप देने के लिये तैयारी करके घर से निकला ही था कि पिताजी ने पूछ ही लिया "पुत्र ! किधर जाने की तैयारी है?" वह असमंजस में पड़ गया, पिताजी से कैसे कहूँ कि मदिरालय जा रहा हूँ । उसने अपने विचार बदल कर अपने शयन कक्ष में आकर सो गया ।" परिवार के सदस्य आज बड़े प्रसन्न थे कि पहली बार आज छोटे भैया ने घर में रहकर समय पर भोजन किया है। अब जीवन में प्रतिज्ञा का चमत्कार साकार होने लगा है। उसके जीवन में धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगा परिवार के सदस्य देखकर आश्चर्य चकित थे । अब वह घर में ही रहने लगा । परिणाम यह हुआ कि सारी बुरी आदतें छूटती गयी । एक दिन ऐसा भी आया कि वह सबकी आंखों का तारा बन गया । मणि कांचन की तरह उसका जीवन उज्ज्वल बन गया । सेठ रोशनलाल सेठ रोशनलाल बहुत ही धनवान था । सम्पन्न परिवार में उसने जन्म लिया था, फिर भी वह धन के पीछे पागल बना हुआ था । पुण्य प्रबल था, इसलिये व्यापार में खूब लाभ होता था । वह यही सोचा करता था - जितना कमाया जा सके उतना धन कमालूं । जीवन को वह चिरस्थायी समझता था। इसलिये उससे कोई धर्म की बात करता तो उसे सुहाती नहीं थी । जो इन्द्रियों के विषय, स्वजन-परिजन, देह-सुख, अस्थिर और नाशवान है, उसमें और चंचल लक्ष्मी को उपार्जित करने में ही वह दिन-रात लगा रहता था । सेठानी बहुत धर्मात्मा थी। उसे सेठजी की धर्म विमुखता अच्छी नहीं लगती थी। वह बार-बार कहती थी "थोड़े से जीवन के लिये क्यों इतना धन कमाने में लगे रहते हो? क्यों सांसारिक सुखों में लुब्ध हो रहे हो? न धन टिकेगा, न ये भोग-सुख टिकेंगे, न शरीर टिकेगा । सेठानी कहते-कहते थक गई, मगर सेठ बिलकुल नहीं सुनता था। वह अपने पति को बहुत समझाती और धर्माचरण करने को कहती । सांसारिक विषयों के मोह में मुग्ध, लक्ष्मी के मद में मत्त सेठ कह देता "तू व्यर्थ ही चिन्ता करती है। मैं धर्म स्थानक में जाऊँगा तो तुम्हें हीरों एवं सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित कौन करेगा?" किन्तु सेठानी के तो रग-रग में धर्म रमा हुआ था, वह बोली- मुझे न तो हीरों के आभूषण चाहिये और न सुन्दर वस्त्रों की इच्छा, मैं चाहती हूं कि आप दुकान खोलने से पूर्व स्नानादि से निवृत होकर उपाश्रय में जाकर मुनिश्री के प्रवचन सुन आया करो । मन को शान्ति तो मिलेगी ही, आत्मा का कल्याण भी होगा । समाज के लोग भी तो सुबह-शाम उपाश्रय में जाते । सुबह सामायिक भी करते और उपदेश भी सुनते। प्रतिक्रमण और धर्म चर्चा भी करते हैं । जिसने धर्म का आश्रय लिया धर्म ने मुसीबत में उसकी रक्षा की । इसलिये कहती हूँ कि बड़ी मुश्किल से मानव-योनि मिलती है। आगे भी मिले कि नहीं कह नहीं सकती । पूर्व जन्म में किये पुण्य कर्मों के कारण ही मानव-जन्म की प्राप्ति होती है। सब जन्मों में मानव-जन्म श्रेष्ठ माना गया है । | कितने ही पामर प्राणियों को धर्म ने डूबने से बचाया है धर्म जीवन के लिये दीपक के समान है। जो मानव के लिये मार्ग-दर्शक का काम करता है । विवेकवान् व्यक्ति धर्म का अनुयायी बनकर अपनी आत्मा को उज्ज्वल बना सकता है । धर्म एक नैय्या है जिसमें बैठकर मानव भवसागर पार कर लेता है । "जिसने धर्म का सच्चा स्वरूप जान कर उसे अपना लिया समझो उसका जीवन सफल हो गया ।" पत्नी की बात सुनकर सेठ रोशनलाल बोला अरी पगली ! अभी तो आयु बहुत शेष हैं । जो आज है वह कल नहीं रहेगा । अभी अच्छी कमाई हो रही है । जब मेरे हाथ-पांव अशक्त हो जायेंगे वृद्धावस्था आ जाऐगी, तब प्रतिदिन उपाश्रय में जाकर धर्मचर्चा में भाग लूंगा । सन्तों के अमृत तुल्य प्रवचन सुनूंगा । धर्म को अंगीकार करूंगा। Educat Unter हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 65 हेमेन्द्र ज्योति हेमेल ज्योति www.jalnelibrary
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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